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कुण्डलिया (हाय री किस्मत्)

हाय री किस्मत्

देखो सारे कर रहे, दूजा इन्क्रीमैंट,

अपना पिछले वर्ष का, बाकी है पेमैंट।

बाकी है पेमैंट, करो मत जल्दी-जल्दी,

कई ‘अटल’ हैं हाय, चढ़ानी जिनको हल्दी।

कह ‘जोशी’ कविराय, सभी किस्मत के मारे,

खाते लंगर भात, आजकल देखो सारे।

------------------------------------ सुशील जोशी

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Sushil.Joshi on October 10, 2013 at 5:57am

इस स्नेहिल टिप्पणी के लिए अतिश: धन्यवाद आपका आदरणीया राजेश कुमारी जी.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2013 at 9:28pm

कई ‘अटल’ हैं हाय, चढ़ानी जिनको हल्दी। हाहाहा हल्दी से ही रंग चोखा होगा ,मजेदार कुण्डलिया लिखी है सुशील जी वाह ,बधाई आपको  

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 8:39pm

आपका ह्रदय की गहराइयों से आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी....

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 8:38pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीय कुंती मुखर्जी.....

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 8:37pm

इस स्नेह के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय प्रदीप जी....

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 8:37pm

सही कहा आदरणीय कपीश चंद्र जी..... लेकिन यहां विडंबना यह है कि मैं एक निजी कार्यालय में कार्यरत हूँ और वहाँ के भी यही हाल हैं.... या यूँ कहें कि वस्तुत: अपने ही कार्यालय के प्रति यह कटाक्ष रचा था मैंने और अपने एवं अपने साथियों की ही स्थिति बयाँ की है.... टिप्पणी के लिए सादर आभार आपका...

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 8:32pm

वाह वाह आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी..... खूब दोहा कहा है.... साथ ही मेरी इस रचना को पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार....

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 8:31pm

सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय शिज्जू भाई जी....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 9, 2013 at 2:04pm

वाह वा !!!! आदरणीय सुशील भाई , मध्यम वर्गीय कर्मचारी के दुखों से सुन्दर परिचय कराया आपने !! बहुत बधाई !!! 

Comment by coontee mukerji on October 9, 2013 at 12:35pm

आज का  एक और कड़वा सत्य.

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