सुकुमार के पास और कोई चारा नहीं बचा था, व्यापार में हुए 200 करोड़ रुपये के घाटे वह सहे तो कैसे, अब या तो वह शहर-देश छोड़ कर भाग जाए या फिर काल का ग्रास बन जाए| सुकुमार को कोई राह सुझाई नहीं दे रही थी| सारे बंगले, ज़मीनें, कारखाने बेच रख कर भी इतना बड़े नुकसान की पूर्ति नहीं कर सकता था| फिर भी वो पुरखों की कमाई हुई सारी दौलत और जायदाद का सौदा करने एक बहुत बड़े उद्योगपति मदन उपाध्याय के पास जा रहा था| मदन उपाध्याय देश के जाने-माने उद्योगपति थे, उनके कई सारे व्यवसायों में हीरे की खानें, स्वर्ण आभूषणों के कारखाने, टेलिकॉम, कंप्यूटर के अत्याधुनिक कलपुर्जों के कारखाने आदि शामिल थे| 200 करोड़ उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी| उनके पी.ए. से फोन पर बात कर समय भी ले लिया था|
सुकुमार, मदन उपाध्याय के पास जाने की तैयारी ही कर रहा था कि अचानक दरवाज़े खटखटाने की आवाज़ से ह्रदय में एक डर सा जाग उठा| उसके नौकर ने दरवाज़ा खोला, बाहर से एक वकील, दो पुलिस वालों के साथ चौधरी जी अन्दर आये| सुकुमार के दिल की धडकनें और भी तेज़ हो गयीं, चौधरी जी से सुकुमार ने करीब 50 करोड़ रुपये उधार ले रखे थे| बातचीत करने पर पता चला कि चौधरी जी कोर्ट से इजाज़त मांग कर सुकुमार की सारी ज़मीन-जायदाद की नीलामी करवाने का फरमान लेकर आये हैं| सुकुमार धम से सोफे पर बैठ गया| एक रास्ता और बंद हो गया था| शायद अब कोई रास्ता बचा ही नहीं था| 15 दिनों के बाद हर चीज़ की नीलामी थी| कोई दोस्त, कोई रिश्तेदार साथ नहीं था| पत्नी तक बच्चों के साथ अपने मायके गयी हुई थी| दुःख की घड़ी में सहारा था तो बस ईश्वर का| सुकुमार, चौधरी जी और उनकी पलटन के जाने के बाद, आँखें बंद करके ईश्वर से प्रार्थना करने लगा| उसे महसूस हुआ कि शायद मदन उपाध्याय उसकी कुछ मदद कर पायें| उनकी हर जगह अच्छी जान-पहचान थी| लेकिन उनसे वो कभी मिला ही नहीं था, वो उसकी मदद क्योंकर करेंगे|
फिर भी हिम्मत बाँध कर उसी शाम को वो मदन उपाध्याय के पास गया| घर के अन्दर एक बड़े से उद्यान में एक व्यक्ति टहल रहा था, उससे नमस्ते कर के उसने मदन उपाध्याय के बारे में पूछा, उस व्यक्ति ने बताया वही मदन उपाध्याय है| उसने मदन उपाध्याय से सारी बात बता कर दया की भीख माँगी और कहा कि कैसे भी कर के उसके मकान और जायदाद की नीलामी नहीं होने दें| आपकी बड़ी अच्छी जान-पहचान है अगर जज साहब को कह देंगे तो यह नीलामी रुक जायेगी| मदन उपाध्याय ने कुछ सेकण्ड गंभीरता से सोचा, फिर कहा कि इतनी छोटी सी रकम के लिए अपनी ज़ुबान क्यों खराब की जाए| तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो, मैं तुम्हें कुछ रुपये उधार देता हूँ| उन्होंने तुरंत जेब में हाथ डाला, चेकबुक निकाली और 200 करोड़ रुपये का चेक काट दिया| कहा जाओ सबको चुकता कर दो| सुकुमार अचंभित सा रह गया| इतना बड़ा आदमी और इतना दयालु, उसकी आखों से आंसू निकलने लग गए| उसने रोते-रोते कहा कि आपका यह क़र्ज़ मैं कैसे चुकाउंगा| मदन उपाध्याय ने जवाब दिया, एक वर्ष बाद यहीं आकर लौटा देना| सुकुमार ने अपने मोबाईल में मदन उपाध्याय का फोटो लिया, और कहा कि आपके चित्र को ज़िंदगी भर पूजूंगा, मेरी सारी मुश्किलों का हल आपने कर दिया है|
मदन उपाध्याय के घर से बाहर निकलते समय भी सुकुमार की आखों से अश्रुधारा बंद नहीं हो रही थी| बाहर निकलते ही उन्हें चौधरी जी अन्दर आते दिख गए| उन्होंने सुकुमार के यहाँ आने का कारण पुछा, सुकुमार ने सारी बात बताई और वो चेक भी बताया जो मदन उपाध्याय ने उसे दिया था| चौधरी जी भी आश्चर्यचकित थे, उन्होंने कहा की मदन उपाध्याय तो हर व्यवसाय में हमारे बड़े भाई हैं, अगर आपको उनका आशीर्वाद मिल गया है तो मैं आपके मकान की नीलामी नहीं करवा सकता| आप इन रुपयों से फिर से व्यवसाय करो, बाद में मुझे चुका देना| मदन उपाध्याय साहब को कुछ कहने की मेरी हिम्मत ही नहीं है| उनके कई सारे अहसान हैं मेरे ऊपर| उनको ये मत बताना कि नीलामी मैं करवा रहा था| सुकुमार ने खुशी खुशी चौधरी साहब की बात मान ली|
घर पहुँच कर सुकुमार चैन की सांस लिए बैठा ही था कि उसके दिमाग में यह विचार आया कि, इस चेक के आते ही ज़िंदगी बदल गयी, बिना चेक को कैश करवाए ही समय बदल गया| यह चेक तो बहुत ही भाग्यशाली है| उसने निर्णय लिया कि अब वो इस चेक को कैश नहीं करवाएगा| उसके पास एक वर्ष का समय है| क्यों ना थोड़ी मेहनत कर ली जाए| मदन उपाध्याय को मुझ पर विश्वास है, बिना पहचान के मुझे इतने रुपये दे दिए| मुझे भी खुद पर विश्वास होना चाहिए| मैं अब बिना आवश्यकता के इस चेक को कैश नहीं करवाउंगा| पहले मैं कोशिश करूंगा कि इस मुसीबत से खुद-ब-खुद निकल जाऊं, पूरी मेहनत करूंगा| फिर से खुद को खड़ा करूंगा| मेरे पास मेरे गुरु की तस्वीर है और इस चेक का सहारा है|
सुकुमार ने खुद को फिर से अपने व्यवसाय में झोंक दिया, उसके पास अब पूरा सहारा था| एक धुन के साथ फिर से काम शुरू किया, बिना किसी डर के, मदन उपाध्याय का चेक उसके साथ था| उनकी तस्वीर की पूजा करके वो अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को पाने में लग गया| उसकी मेहनत 6 महीने में ही रंग लाने लगी| उसका व्यापार फिर से परवान चढ़ता गया| अगले 6 महीने में उसकी स्थिति पहले से भी बेहतर हो गयी, सारे उधार चुकता हो गए थे| उसने 200 करोड़ के नुकसान को 45 करोड़ के लाभ में परिवर्तित कर दिया था और वो भी मदन उपाध्याय के दिए हुए चेक को बिना कैश कराये| मानव क्या नहीं कर सकता, अगर लगन और मेहनत से काम करे तो|
आज वो दिन आ ही गया था, आज से ठीक एक वर्ष पूर्व सुकुमार को मदन उपाध्याय से दीक्षा मिली थी, वो अपने गुरु का दिया हुआ चेक उन्हें लौटाने गया| समय भी वही था| अन्दर जाते ही उसे मदन उपाध्याय उसी उद्यान में टहलते हुए मिले| यह समय शायद उनके टहलने का ही था| वो दौड़ कर उनके पास गया और उनके चरण स्पर्श कर लिए| मदन उपाध्याय ने सुकुमार को देखा लेकिन ढंग से पहचाना नहीं| सुकुमार ने स्वयं का परिचय दिया कि एक वर्ष पूर्व आपने 200 करोड़ रुपये का चेक मुझे दिया था और लौटाने के लिए कहा था| आज आपके आशीर्वाद से और इस चेक के बहुत बड़े सहारे से मैं अपनी सारी मुसीबतों से उबर गया हूँ| आपका चेक कैश करवाने की आवश्यकता ही नहीं पडी, केवल उसके सहारे ने ही सारी परेशानियाँ ख़त्म कर दीं| यह लीजिये आपका चेक|
जैसे ही सुकुमार, मदन उपाध्याय को चेक देने को आगे बढ़ा, एक बड़ी सी कार पोर्च में आकर खडी हो गयी, उसमें से एक बड़ा ही प्रभावी व्यक्ति बाहर आया और तेज़ क़दमों से उनकी और बढ़ा| सुकुमार ने चेक अपने हाथों में छुपा लिया| वह व्यक्ति मदन उपाध्याय के पास आया, उनका हाथ पकड़ा और दूर बैठी एक नर्स को आवाज़ लगाई| नर्स भागी-भागी आयी| उस व्यक्ति ने कहा कि भाईसाहब ने दो दिनों से ढंग से खाना नहीं खाया है, उन्हें थोड़ा आराम कराओ, डॉक्टर थोड़ी देर में आ रहे हैं| यह कह कर वो व्यक्ति चला गया| सुकुमार ने नर्स से पूछा यह व्यक्ति जो आये थें, वो कौन हैं| नर्स का जवाब सुनते ही वो अचंभित रह गया| नर्स ने बताया कि वो “मदन उपाध्याय” हैं| तो फिर ये जो खड़े हैं, ये कौन हैं, नर्स ने बताया कि ये तो मदन सर के बड़े भाई हैं, बचपन से ही उनका मानसिक विकास अवरुद्ध हो गया था| मदन सर उनकी बड़ी देखभाल करते हैं और बहुत प्यार करते हैं| इतने साल हो गए फिर भी इनकी दिमागी हालत पर कुछ खास फर्क नहीं पडा|
यह कह कर नर्स उस दिमागी मरीज़ को लेकर चली गयी| चेक सुकुमार के हाथ में ही रह गया|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
मर्मस्पर्शी कहानी.. अंत बिलकुल अनअपेक्षित था.. बहुत सुन्दर सकारात्मक संदेशपरक कहानी
हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी यह कहानी अंत तक जिज्ञासा बनाए रखने में पूर्णत: सक्षम है आदरणीय चंद्रेश जी..... बाकी अरुन भाई की जिज्ञासा कि 'चैक बुक कहां से आई' भी विचारणीय है...... इस प्रभावी लेखन के लिए बधाई हो आपको....
प्रारंभ से अंत तक बांधनेवाली सुंदर कहानी बधाई चंद्रेश जी ।
आदरणीय चंद्रेश जी बहुत ही प्रेरक और रोचक प्रस्तुती ... हार्दिक बधाई आपको
आदरनी चंद्रेश जी । काफी प्रभावोत्पादक कहानी है आपकी । अंत तक उत्सुकता बनी रहती है । इस प्रेरणा दायक कथा के लिए मेरी बधाई स्वीकारें ।
आपकी यह कहानी बहुत अच्छी लगी। अंत तक बांधकर रखती है, साथ में सार्थक संदेश भी।
बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय चन्द्रेश भाई, बहुत सुन्दर कहानी है, अन्त ने अभिभूत कर दिया. एक दृढ़ इच्छा शक्ति क्या क्या कर सकता है इसका एक अद्भुत उदाहरण है.
एक बार फ़िर से बधाई..
सादर.
आदरणीय चन्द्रेश भाई , बहुत अच्छी कहानी की रचना की है आपने !!!! बधाई !!! सब कुछ हमारे भरोसे पर ही आश्रित होता है , सहारा अंत मे आभासी निकला पर सहारे पर विश्वास असली था !!! बहुत खूब !!!
लाजबाब ..क्या ट्विस्ट हुई कहानी ..अंत तक अंदाज ही नहीं लगा ...पहले लगा सिर्फ आदमी की लगन और अपनी तकदीर को बदलने में उसका प्रयास हे जरूरी है शायद यह इंगित करेगी रचना ...लेकिन इश्वर की अद्रश्य कृपा के तरफ मुडती इस रचना के तो वाकई क्या कहने ...सार्थक प्रयास ..दशहरे पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
आदरणीय कहानी में एक बात समझ नहीं आई यदि वो उनके बड़े भाई थे तो उनके पास मदन उपाध्याय जी की चेक बुक कहाँ से आ गई. खैर एक बात बहुत पसंद आई कि इंसान यदि चाह ले तो सब कुछ संभव हो सकता है. एक सकारात्मक सन्देश देती हुई इस कहानी हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online