For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूख ... विजय निकोर

भूख  

 

 

यह सच्ची घटना कई साल पहले की है जब मैं मात्र १८ वर्ष का था। गुजरात के आनन्द शहर से दिल्ली जा रहा था। रास्ते में बड़ोदा (अब वरोदरा) स्टेशन पर ट्रेन बदलनी थी.. फ़्रन्टीयर मेल के आने में अभी २ घंटे बाकी थे। रात के लगभग ११ बजे थे। समय बिताने के लिए मैं स्टेशन के बाहर पास में ही सड़क पर टहलने चला गया। एक चौराहे पर छोटी-सी लगभग ५ साल की बच्ची खड़ी रो रही थी, रोती चली जा रही थी। मेरा मन विचलित हुआ। मैंने उससे पूछा..." क्या नाम है तुम्हारा?" ..वह रोती चली गई। पास में एक रेड़ी वाला घर जाने से पहले अपने फल टोकरी में डाल रहा था, कहने लगा, " बाऊ जी, इसे भूख लगी होगी, पास में फ़ुट्पाथ पर सो रहे लोगों में से किसी की बच्ची होगी, भूख लगी होगी, उठ कर चली आई होगी।"

 

मैंने चार केले खरीदे, एक उस रोती बच्ची को दिया, और उससे पुन: पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

अभी भी रोने के बीच उसके मुँह से निकला, "पगली"

"नहीं, तुम्हारा नाम क्या है?" ... और फिर वही जवाब, "पगली"।

 

उसका चेहरा जैसे भूख और गरीबी की कहानी हो, कितने गहरे प्रश्न समेटे हुआ था।मैंने उसे केला छील कर खाने को दिया, और उसकी उंगली पकड़ कर पास में लगभग २०० फ़ुट दूर फ़ुटपाथ पर सो रहे लोगों को जगा कर पूछता गया कि कहीं वह उस बच्ची को जानते हैं। पहले तो सब "न" ही कहते गए, पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था जब एक आदमी ने बताया कि यह पास में सो रहे "जुगल" की बेटी है। उसने जुगल को नींद से जगाया और मैंने इस बच्ची को उसे सोंपते हुए कहा "अरे भाई इस बच्ची का ख्याल रखा करो... यह वहाँ चौराहे पर खड़ी रो रही थी।"  पहले तो वह चुप, और फिर कहने लगा ..." साहब, हम तो भूल जाएँ कि आज सुबह से खाने को कुछ नहीं मिला, पर इस भूखी बच्ची को कैसे भुलाएँ ? भूखी,उठ कर चली गई होगी।"

 

जुगल के मुँह से दारू की बदबू आ रही थी। मैंने बचे हुए ३ केले जुगल को दिए, उसकी आँखों में गरीबी को पढ़ा, उसे कुछ पैसे दिए और डर लगा कि वह कहीं इनको खाने के बजाए दारू पर न खर्च दे  ... और मैं कितने सारे गहरे प्रश्न समेटे स्टेशन पर लौट आया, दिल्ली की फ़्रंटीयर मेल के लिए।

 

-------

-- विजय निकोर

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

 

Views: 931

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Priyanka singh on October 15, 2013 at 9:19pm

बेहद मार्मिक संस्मरण है आदरणीय विजय सर जी.......

Comment by vijay nikore on October 15, 2013 at 6:53pm

आदरणीया राजेश जी:

 

रचना के विषय पर  विचार देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

भूख और दारू ... यह आपस में विरोधाभासी हैं  ... कोई अपनी समस्या को, अपने दुख को भूलने के लिए पीना शूरू करते हैं, और समस्या का हल या दुख का निवारण न कर पाने के कारण दारू की आदत में पड़ जाते हैं ... और एक बार आदत शूरू हो जाए तो

गलत और सही का अनुमान नहीं रहता।

 

पुन: आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by विजय मिश्र on October 15, 2013 at 1:41pm
विजयजी ! यह वृतान्त कोई कथ्य नहीं ,फुटपाथों पर फैले एक नितान्त बेचारा किस्म के जनसैलाब की आत्मकथा है और किसी एक से इस समस्या का निराकरण सम्भव नहीं . जिसे भी इनका साक्षात्कार होता है .बस आपही की तरह हारा हुआ मन और थका हुआ मस्तिष्क लेकर लौट आता है . हाँ ,छोटी उमर में हमारी जिज्ञासाएं शायद हमें ज्यादा दुखों को इस प्रकार से संचित करने को बाध्य करतीं हैं .शुभ विजया !
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 15, 2013 at 9:50am

सच! भूख की आग, जब पेट में सुलगती है, तो बड़े से बड़ा व्यक्ति, जाने क्या क्या कर गुजरता है,तो वो बेचारी नन्ही सी जान, कहाँ से नींद उसे आजाये, बहुत मर्मस्पर्शी संस्मरण आपने साझा किया, आदरणीय विजय निकोर जी, बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 9:43am

आदरणीय विजय निकोर जी ये संस्मरण हमारे समाज के ,हमारे देश के गरीबी से शापित उस वर्ग का आईना है जो हर कुछ कदम बाद आपको दिखाई दे जाता है ,किन्तु दुःख इस बात का भी है की गरीबी का गम भुलाने के लिए ये लोग परिश्रम करने की बजाय बचे कुचे पैसे दारु पीने में उड़ा देते हैं,नहीं सोचते की इन पैसो  से   कुछ तो खिला ही सकते हैं अपने बच्चो को. 

Comment by vijay nikore on October 15, 2013 at 7:10am

आदरणीय सुशील जी,

 

रचना के भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:03am

बेहद मार्मिक संस्मरण है आदरणीय विजय जी.......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। एक के बाद एक कामयाब शेर। बहुत आनंद आया पढ़कर। मतले ने समां बांध दिया जिसे आपके हर…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service