सार्थक दशहरा
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धर्म की विजय हुई त्रेता में, राम ने मारा रावण को।
उसकी याद में हमने भी, हर साल जलाया रावण को॥
कलियुग में मायावी रावण, रूप बदलकर आता है।
वो भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, अनाचारी कहलाता है॥
अधर्मी रावण का पुतला, हर बरस जलाया जाता है।
कई रूप में अंदर बैठा रावण, हँसता है, मुस्काता है॥
अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।
फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥
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-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी ( छत्तीसगढ़ )
मौलिक- अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अखिलेश जी ..बिलकुल सही सन्देश देती शानदार रचना ..दशहरे की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ..और रचना पर हार्दिक बधाई के साथ
अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।
फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥
सच! हर वर्ष रावन जलाने से, कुछ नही होगा, बहुत सार्थक सन्देशप्रद रचना, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय अखिलेश जी
आदरणीय बडे भाई , बहुत सही, बहुत सटीक बात कही है आपने , आपको बधाई !!!!!
वाह आदरणीय सत्य सटीक सुन्दर विचारणीय संदेशात्मक प्रस्तुति सत्यता को सुन्दरता से दर्शाया है आपने. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
आदरणीय भाई जी , बहुत बढ़िया कविता है आपकी । सच मुच , हर साल रावण मारने के बाद भी अन्दर का रावण नहीं मरता । जिसे मारने की जरूरत पहले है । कविता का हर पद प्रशंशनीय है । बहुत बहुत बधाई आपको ।
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
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