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चलो चलें अब यहाँ से यारो, रहा न अपना यहाँ ठिकाना,
नहीं रहा अब, जो हम से रूठे, किसे भला है हमें मनाना.
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था इश्क़ हमको, था इश्क़ तुमको, मगर बगावत न कर सकें हम,
न तुम ने छोड़ा, न बेवफ़ा हम, न तुम ने समझा, न हम ने जाना.
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शराब छोड़ी, नशा बुरा था, नज़र से पी ली, नज़र मिलाकर,
नज़र नज़र में नशा चढ़ा यूँ, वो भूल बैठा मुझे पिलाना.
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न फेरियें मुंह, अभी से साहिब, अभी सफ़र ये शुरू हुआ है,
कत’आ करो तुम अभी न रिश्ता, इसे है सदियों तलक निभाना.
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खिंचा मै आऊँ, तुम्हारी जानिब, लगे बुलावा, लबों की लरज़िश,
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें लगे घटा सी, महक तुम्हारी करे दीवाना.
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भड़क रहें है दिलों में शोले, थिरक रही है लवें दीयों की,
लगाए सावन, ये आग लेकिन, नहीं वो जानें इसे बुझाना.
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मुझे अभी तक हैं याद आतें, बिखर गए जो हसीन सपने,
सिसक रहे है जो दिल में अब तक मगर मुनासिब है भूल जाना.
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सुनों पिया तुम, जवाब दो तुम, कहाँ छुपे हो मेरे ख़ुदा तुम,
बहुत बुरा है ये दिल लगाना, यूँ दर्द देकर दवा छुपाना.
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तुम्हे लगी जो फ़क़त कहानी, जिया उसे ‘नूर’ जिंदगी भर,
वही तो थी बस मेरी हक़ीक़त, जिसे समझते रहे फ़साना.
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मौलिक एवं अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
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