"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.
"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.
"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय लक्ष्मण जी, हर इन्सान अपने मताधिकार के उपयोग से यह चाहता है की ऐसी सरकार बने जो सभी जन की भलाई का काम करे, देश,प्रदेश, शहर, और गाँव का विकास करे, न कि स्वयं का, हर धर्म के लोगो को समानता से देखा जावे, परन्तु यहाँ तो जिद्दी बच्चों की तरह झगडा होता है, यह खिलौना तेरा नही तो मेरा भी नहीं,
आपका बहुत बहुत आभार, अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
यह आपका कहना शत-प्रतिशत सही है, इस स्वार्थ की राजनीति ने किसान ही नही, देश के बेरोजगार, महिलाओं, अलग-अलग धर्म के लोगों, मजदूरों, सरकारी कर्मचारियों सभी को अपनी चपेट में ले रखा है, आप जैसे लघुकथाकार की प्रतिक्रिया पाकर, मेरी रचना धन्य हो गई आदरणीय दीपक जी, अपना स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
किसान-मजदूर हो चाहे कोई और मेहनतकश इस राजनीति की लपटों से सभी झुलसाए जाते हैं। अपने भविष्य के भले के लिए ये सौ-सौ पेटवाले एक पेटवालों की वर्तमान की रोटी भी छीन रहे हैं।
आपने रचना व् किसानों के मर्म को छुआ,आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शुशील जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र जी, किसानों के हालत और हालात को खीच कर आपने सामने रख दिया है. एक एक खुशी पाने के लिये किसानों को तरसना पड़ रहा है. एक मार्मिक कथा. सादर.
जन हित में लिए गए फैसले पर राजनीति से न जनता का भला न राज नेताओं को | अब किसान विपक्ष को जिसने सहायता
पर रोक लगवा दी, वोट क्यों देंगे | थोथी विरोध की राजनीति से किसी का भी भला नहीं होता | सुन्दर सन्देश देती लघु कथा के
लिए हार्दिक बधाई
जी हाँ , आदरणीया राजेश जी, आप बिलकुल सही कह रहीं है, नेताओं को किसी की परेशानी से कोई मतलब न्हीं, उन्हें सिर्फ अपनी रोटी सेंकने से मतलब है, वो कैसे भी सिंकनी चाहिए..बस और कुछ न्हीं !
आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपका कहना एकदम सही है आदरणीय गणेश जी, दल के नेता पक्ष में हो या विपक्ष में, मुआवजा की राशी का भार तो किसी न किसी प्रकार से जनता पर ही आना है, उस राशी को सौंप कर हालाँकि कोई अहसान तो न्हीं कर रहे है, पक्षीय दल ,उसमें से कुछ खर्चा पानी भी निकाल ही लेंगे.,. नुकसान तो जनता की होना है, हमारे यहाँ, एक कहावत है की 'सांड से सांड लड़ा,बागुढ़ का घान किया'
आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपने सच कहा आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, किसान पृकृति की मार से परेशान है, उसका परिवार तो अपनी जगह, वो देश की रोटी की भी चिंता में रहता है, उपर से गंदी राजनीति का कहर...परेशानी को ओर बड़ा देती है,
अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online