For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने दिल से मेरा सिलसिला जोड़ दे ,
द्वार आखों का अपनी खुला छोड़ दे..
.
ऐसी पागल हवायों की औकात क्या
तू जो चाहे तो तूफाँ का रुख मोड़ दे…
.
राह में रोक लेना तो रुसवाई है
साथ चल या मेरा रास्ता छोड़ दे
.
साफ चाहत का जिसमे न चेहरा दिखे।
दिल ये कहता है वो आइना तोड़ दे ...
.
दुःख में आँखें न आ जाएँ तेरी कहीं
रात भर याद में जागना छोड़ दे…।

मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 5:05am

आ0 पंकज भाई.... ओबीओ में आपका स्वागत है..... इस प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.... बहुत ही खुशी हुई कि अंग्रेज़ी में शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी आप हिंदी सीखने एवं लिखने के प्रति इतने संवेदनशील हैं..... थोड़ी सी और मेहनत आपको एक अलग मुक़ाम तक पहुँचा सकती है..... सादर

Comment by Pankaj Mishra on October 22, 2013 at 12:28am

आप  सभी  का  बहुत बहुत सुक्रिया ..आप  सब  के  विचार  और  ज्ञान  जान कर  बहुत   खुसी  हुई ...वैसे  ये  मेरी  पहली  रचना  थी  जो  OBO  माध्यम  से  प्रकाशित  हुई ..यह  मैंने  बेखबर  के  मनोभावों  को  अपनी  लाइनों  के  माध्यम  से  प्रस्तुत  किया  है  .मै जानता   हु  इश्को  ग़ज़ल  का  नाम  देना  गलत  है  ..वैसे  मुझे  ग़ज़ल  लेखन  का  उतना  ज्ञान  नहीं  है   ..,हमारी  शिक्षा  भी  इंग्लीश मीडियम के  डॉन बॉस्को स्कूल से  हुई  है  ,,अभी  तो  मै  बस  हिंदी  में कविताओ  को  लिखना  सिख  रहा  हु  ...जैसा  की  ये  मेरा  सौख और  प्रेम  है .मै  जनता  हु  की  इतने  बड़े  कवियों  के  बिच  मेरा  कोई स्थान  नहीं है  पर खुद  के  भाव  लिखने  का  यह  छोटा  सा  प्रयास  है  ..और  गलतियों  को  मेरे  आप सभी माफ़  करे.
     बहुत बहुत आभार आदरणीय जनों
     आपका सुझाव पाकर धन्य महसूस कर रहा हूं।
......
पंकज मिश्र

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 20, 2013 at 1:47pm

मैं..आदरणीय शकील साहब की बात से पूर्ण सहमत हूँ...हालाँकि...आ. सौरभ पाण्डेय जी की बातें भी बहुत उचित हैं....//..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 9:45pm

सही कहा वीनस जी आपने.

हम दूसरे रुक्न में ही उलझने लगे थे ..  पता नहीं क्यों दूसरा २१२  मुझे सेट क्यों नहीं हो पा रहा था. और बार-बार मात्रा गिराना इधर-उधर कर रहा था. वैसे मात्रा गिरे अक्षर ठीक ही हैं. लेकिन यों?  इतने !?

बहुत अच्छे

Comment by वीनस केसरी on October 19, 2013 at 9:04pm

मित्रों / अग्रजों से निवेदन है कि इस ग़ज़ल को एक बार
बह ए मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
२१२ / २१२ /  २१२ /  २१२
पर तक्तीअ कर के देख लें ...
शायद ग़ज़ल संतुष्ट कर सके


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2013 at 8:27pm

आपकी ग़ज़ल के मिसरों को किस वज़्न से देखूँ... गज़ल का दूसरा रुक्न संयत नहीं हो रहा है, मुझे.  क्योंकि मुझमे इसे समझने में शायद कमी है.

यह अवश्य है कि बार-बार मात्राओं को गिराना उचित नहीं होता.  बहरहाल, बहुत-बहुत बधाई..

शुभ-शुभ

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 1:53pm

बह्र का उल्लेख कर दीजिए आदरणीय Pankaj Mishra  जी ताकि इससे हम जैसे नए लोग लाभ उठा सकें। सादर।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 1:50pm

क्या बात है बहुत खूब

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
13 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service