जाने किस आशंका से
त्रस्त मन /
झंझावात मे
नन्हा सा दिया /
अब बुझा कि तब बुझा /
अर्थहीन शब्दों के सहारे
घिसटती ज़िन्दगी
क्या यही है ?
किम्वदन्ति बन गई है
तथागत को मिली शान्ति /
आत्म मंथन करने पर
कालिख ही कालिख हाथ लगी /
दोषारोपण सवेरो पर ,
सूरज की किरणे
किसी अंधी गली में सोई मिली ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'
Comment
ज़िंदगी की सतहीयता व खोखलेपन से उपजे नैराश्यपूर्ण भाव मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत हुए हैं
आत्म मंथन करने पर
कालिख ही कालिख हाथ लगी /..........यानि अपनी ही गलतियों का एहसास होना
दोषारोपण सवेरो पर,..................फिर सवेरों पर दोषारोपण क्यों ?...ये समझ नहीं आया
सूरज की किरणे
किसी अंधी गली में सोई मिली..................सुन्दर ..हृदयभेदी पंक्ति
हार्दिक शुभकामनाएं
बेहद गहन एवं भावपरक अभिव्यक्ति है आ0 अरविन्द जी..... बधाई....
आदरणीय जितेन्द्र जी , डाo आशुतोष मिश्र जी आपको रचना पसंद आई बहुत आभार ।
आत्म मंथन करने पर
कालिख ही कालिख हाथ लगी /
दोषारोपण सवेरो पर ,
सूरज की किरणे
किसी अंधी गली में सोई मिली ।
बेहद सुंदर भाव, अति गहराई से उभरे हुए, बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरविन्द जी
आदरणीय गिरिराज भाई , आदरणीय राम शिरोमणि जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् ।
आदरणीय अरविन्द भाई , सुन्दर अभिव्यक्ति , सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको बधाई !!!!!!
सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको //सादर
aadarniya Meena ji , aadarniya arun ji , bahut bahut dhanyawad
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई आप को
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