कोमल काया फूल सी, अति मनमोहक रूप ।
तेरे आगे चाँद भी, लगता मुझे कुरूप ।।
भोलापन अरु सादगी, नैना निश्छल झील ।
जो तेरा दीदार हो, धड़कन हो गतिशील ।।
गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।
अधर पाँखुरी पुष्प से, कोमल गाल गुलाब ।
तुमको पाकर हो गया, पूरा दिल का ख्वाब ।।
ज्यों झूमर से घर सजा, त्यों झुमकें से कान ।
आभूषण ही लाज का, नारी का सम्मान ।।
खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।
छम छम छम पायल बजे, लूटे चैन करार ।
ईश्वर से इतनी दुआ, अमिट रहे यह प्यार ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय डॉ. आशुतोष, आपसे सादर निवेदन है कि टिप्पणी करने के क्रम में ऐसी बातें न लिख दिया करें जो मंच के उद्येश्यों पर ही कटाक्ष हो. बात पाठक तक तो फेसबुक के माध्यम से भी पहुँचायी जा रही है. फिर इस मंच पर सुधीजनों को इतना समय देने, रचना की प्रस्तुतियों पर इतना मंथन करने और उसके अनुसार इतने गहन प्रयासों की आवाश्यकता ही क्या है ?
पुनः, यह मंच किसी ब्लॉगिया परिपाटी को नहीं मानता कि अच्छी-अच्छी बातें की जाय तो अन्य भी वापस अच्छी-अच्छी टिप्पणी किया करेंगे. मंच की अवधारणा के अनुसार, यहाँ रचनाकार से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण रचनाकर्म और स्वयं रचना होती है.
विश्वास है, आदरणीय, मैं अपनी बात सादर प्रस्तुत कर पाया.
शुभ-शुभ
अरुण जी ..पढ़कर आनंद आ गया ..दोहों के तकनीकी पक्ष के बारे में जानकारी नहीं है ..बात पाठक तक पहुचना चाहिए ..आपकी बात पहुची ..आपको तहे दिल बधाई के साथ
बढिया दोहे हुए हैं, अरुण भाई. बधाई लें.
निम्नलिखित दोहे भाव, अर्थ और संप्रेषण की दृष्टि से पूरी तरह से संयत हैं -
गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।
खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।
छम छम छम पायल बजे, लूटे चैन करार ।
ईश्वर से इतनी दुआ, अमिट रहे यह प्यार ।।
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.
अन्य कई में तुकन्तता का आग्रह तथ्य पर ही भारी पड़ रहा है.
एक बात :
मैं आपके माध्यम से साझा करना चाहता हूँ कि छंदों में और के लिए अरु का प्रयोग वस्तुतः उस समय होता है, या होना चाहिये जब छंदों की भाषा में आंचलिक शब्दों की बहुतायत हो. और छंद का प्रारूप आंचलिक हो.
आपके दोहे की भाषा खड़ी या आधुनिक हिन्दी है. यहाँ और का द्विमात्रिक रूप औ’ साहित्यिक हिन्दी में पूरी तरह स्वीकृत है.
शुभ-शुभ
नारी रूप की सुन्दरता का सजीव चित्रण करते दोहावली ने, मन मोह लिया आदरणीय अरुण जी, एक से बढकर एक दोहा..यह दोहे बहुत पसंदीदा हुए, बधाई स्वीकारें
ज्यों झूमर से घर सजा, त्यों झुमकें से कान ।
आभूषण ही लाज का, नारी का सम्मान ।।
खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर स्नेह यूँ ही बना रहे
हार्दिक आभार रवि भाई
भाई अनुज राम बहुत बहुत धन्यवाद आपका
हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश सर स्नेह यूँ ही बना रहे
हार्दिक आभार आदरणीय रमेश जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online