बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ
वज्न : 2122, 2122, 212
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सभ्यता सम्मान अपनापन गया,
आदमी शैतान जबसे बन गया,
भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,
ज्ञान गुण आदर कि अनुशासन गया,
रोग से हो ग्रस्त विचलित भूख से,
मौत के काँधे पे चढ़ निर्धन गया,
आसमां की चाह जबसे हो गई,
चैन का हाथो से छुट दामन गया,
परवरिश का जबसे बदला ढंग है,
खिलखिलाता फूल सा बचपन गया,
बाप को बेटा नसीहत दे कहे,
मैं हुआ बालिग जहाँ शासन गया,
सौ बरस की उम्र होती थी कभी,
आजकल तो साठ में जीवन गया,
देश की तस्वीर बदली इस कदर,
जुर्म का सीना उभर के तन गया..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आसमां की चाह जबसे हो गई,
चैन का हाथो से छुट दामन गया,... छुट ? या छूट ?
बह्र तक का अच्छा अभ्यास हो चुका है. भाईजी, आगे कहन पर ध्यान दें हम. अब वाकई ग़ज़ल कहना शुरु करें.
प्रतीक्षा रहेगी.
शुभेच्छाएँ
परवरिश का जबसे बदला ढंग है,
खिलखिलाता फूल सा बचपन गया,----बहुत सुन्दर शानदार शेर
रोग से हो ग्रस्त विचलित भूख से,
मौत के काँधे पे चढ़ निर्धन गया,-----एक सार्थक शेर वाह
जिन शेरो पर आदरणीय वीनस जी ने चर्चा की है उनमे थोडा सा फेर बदल करके दुरुस्त/बेहतर भाव कर सकते हैं ,शिल्प ,बहर एक दम सही है
बहुत बहुत बधाई आपको प्रिय अरुन अनंत
भाई जी अच्छा प्रयास है! इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
लगता है आप इधर व्यस्त अधिक हैं.
Arui sharma jee bilkul sahee farmaayaa aaone. mai aapse shat pratishat ittefaq rakhti hoon. sunder gazal ke liye badehai kubulen
बहुत बहुत दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अरुन जी .. बहुत सुन्दर गज़ल
रोग से हो ग्रस्त विचलित भूख से,
मौत के काँधे पे चढ़ निर्धन गया,....वाह क्या दमदार शेअर हुआ!
बधाई आदरणीय अरुण अनंत जी!
आदरणीय अरुन भाई.... गज़ल के शिल्प का ज्ञान मुझे नहीं है किंतु भावों के लिए बधाई स्वीकारें.....
भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,
ज्ञान गुण आदर कि अनुशासन गया,.... इसमें कि शब्द की क्या जरूरत थी ? व रखते तो बेहतर न होता ?
बाप को बेटा नसीहत दे कहे,
मैं हुआ बालिग जहाँ शासन गया,,,,, इस शेर में कहा क्या गया है ?
सौ बरस की उम्र होती थी कभी,
आजकल तो साठ में जीवन गया, .... सपाट बयान है ... इसमें तगज्जुल कहाँ है भाई ???
देश की तस्वीर बदली इस कदर,
जुर्म का सीना उभर के तन गया.. .......... सीना उभर के तन जाना,,, ये कैसी बेहूदा उपमा है भाई
अरुण भाई आपने इससे बहुत अच्छी ग़ज़लें कही हैं और यह मंच इस बात का साक्षी है ...
हमको लिखना खूब चाहिए मगर सब कुछ साझा करने से बचना चाहिए ...
ये ऐसी रचना है जो आपको लिखनी थी मगर साझा नहीं करनी थी ....
बहुत हल्की ग़ज़ल है
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