कोमल काया फूल सी, अति मनमोहक रूप ।
तेरे आगे चाँद भी, लगता मुझे कुरूप ।।
भोलापन अरु सादगी, नैना निश्छल झील ।
जो तेरा दीदार हो, धड़कन हो गतिशील ।।
गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।
अधर पाँखुरी पुष्प से, कोमल गाल गुलाब ।
तुमको पाकर हो गया, पूरा दिल का ख्वाब ।।
ज्यों झूमर से घर सजा, त्यों झुमकें से कान ।
आभूषण ही लाज का, नारी का सम्मान ।।
खन खन खनके चूड़ियाँ, हरी गुलाबी लाल ।
मेरी हर इक चाह का, रखतीं सदा खयाल ।।
छम छम छम पायल बजे, लूटे चैन करार ।
ईश्वर से इतनी दुआ, अमिट रहे यह प्यार ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
मनमोहक दोहों के लिए बधाई, आदरणीय अरून जी।
अधर पाँखुरी पुष्प से, कोमल गाल गुलाब ।
तुमको पाकर हो गया, पूरा दिल का ख्वाब ।।
वाह सुन्दर दोहे भाई !
सुकोमल भाव प्रस्तुति के लिए बधाई प्रिय अरुण जी
गेसू लगते आपके, ज्यों रेशम की डोर ।
बिखरें काली रात हो, सुलझें होती भोर ।।....बहुत सुन्दर
फिर भी कुछ दोहों में कथ्य और प्रभावी हो सकता था...
शुभकामनाएं
वाह वाह आ0 अरुन भाई..... कितने सुंदर दोहे रचे हैं....... पढ़कर मन आनंदित हो गया..... आपने नायिका की सुंदरता का इस कदर बखान किया है कि प्रत्येक पंक्ति एक छवि उभार कर ला रही है............ बहुत बहुत बधाई इस अति सुंदर प्रस्तुति के लिए....
बहुत ही मनभावन ...प्रेम का पुट , रचना को जोड़ रहा है दिल से ...बढ़िया दोहे ..उत्तम दोहे :)
आदरणीय आशुतोष सर दोहों को पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आपका जहाँ तक तकनीकी पक्ष की जानकारी है तो यहाँ समूह में भारतीय छंद विधान में उपलब्ध है. हम सबने यहीं से सीखा है और यहीं से स्वतः स्वतः गुरुजनों के सहयोग से कमियों को दूर कर रहे हैं. मंच पर तनिक विचरण कीजिये खजाना मौजूद है अवश्य मिलेगा. सादर
आदरणीय श्री सौरभ सर जी आपकी विस्तृत टिपण्णी की प्रतीक्षा रहती है दोहे आपको पसंद आये मेरे लिए प्रसन्नता की बात है आपने और एवं अरु का उपयोग कहाँ और कब करना चाहिए इसकी जानकारी भी साझा की जिससे मैं अभी तक अनभिज्ञ था, जिन होने में तुकन्तता भारी पड़ रही है उन्हें सुधारने का प्रयास करता हूँ. हृदयतल से हार्दिक आभार आपका
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया मीना जी
हार्दिक आभार जीतेंद्र भाई जी
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