मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,
दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बाकी ग़ज़ल तो रवां दवां है मगर ....झुन्झुलाहट !!!! ये क्या होता है भाई
बहुत ख़ूब आदरणीय .. मतले पर गुणी जनों ने अपने विचार रखें है जो विचारणीय है .. दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू, में 'रुलाये' करने से बेहतर होगा ऐसा मुझे लगता है...
एक बेहद कामयाब रचना के लिए बधाई
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,
बहुत खूब........बेहद उम्दा गजल कही आपने भाई !!!
आदरणीय अनन्त जी मेरे ज्ञान के अनुसार शब्द झुन्झुलाहट न होकर झुझुलाहट होता है। हो सकता है आप जिस क्षेत्र में रहते हों वहाँ झुन्झुलाहट का ही उच्चारण होता हो। पर विवाद में न पड़ कर बेहतर होगा कोर्इ नया शब्द जैसे तिलमिलाहट आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। गजल वाकर्इ लाजबाब है। बहुत बहुत बधार्इ।
अपने तो भावों कि सरिता बहा दी, वाह भाई वाह बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी... //हार्दिक बधाई आपको
//निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है// बेहतरीन!
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है अरुण जी वाह! छू लिया दिल को दाद कुबूल करें
बेहद खूबसूरत भावों से सजी गजल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' सर।
मक्ते ने मुझे बेहद प्रभावित किया। सादर।
अरुण जी ...निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,..इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेष रूप से तहे दिल बधाई ...
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय सर आशीष यूँ ही बना रहे
हार्दिक आभार आदरणीय जीतेंद्र भाई जी
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