दिए दिन, महीने, बरस
जीवन के अनमोल पल
तुम्हारी तल्खियों से
आहत जख्मों को छुपा
मुस्कान की सौगात दी
कोमल भावनाएं
इच्छाओं की आहूति दी
कायम रखी
तुम्हारी मिल्कियत
वजूद को मिटा कर
फिर भी
तुम छीनते रहे मुझसे
मेरे हिस्से का वक्त
तुम्हें मंजूर नही
मेरा खुद के लिए
जीना
तृप्त ना हो सकीं
तुम्हारी इच्छाएं
छीन लेना चाहते हो
मेरा आस्तित्व
मेरी अभिलाषाएं
मेरा सब कुछ
हक से लेने वाले
कभी सोचा
तुमने मुझे क्या दिया ?
कभी आत्ममन्थन करना !!
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
तुम छीनते रहे मुझसे
मेरे हिस्से का वक्त
तुम्हें मंजूर नही
मेरा खुद के लिए
जीना
तृप्त ना हो सकीं
तुम्हारी इच्छाएं
छीन लेना चाहते हो
मेरा आस्तित्व
मेरी अभिलाषाएं
मेरा सब कुछ
हक से लेने वाले
कभी सोचा
तुमने मुझे क्या दिया ?
कभी आत्ममन्थन करना
सही प्रश्न किआ है मीना जी आपने ......आपके भाव बहुत ही गहरे हैं और आपके दर्द कही उससे अधिक झलक रहा है ...बहुत बहुत बधाई /
बहुत ही सार्थक प्रश्न छुपा है आपकी रचना में आदरणीया मीना जी //हार्दिक बधाई आपको //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश जी
हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी | सादर
आदरणीय पाठकजी निश्चित ही यह रचना हमें आत्ममंथने करने विवश कर रही । सार्थक अभिव्यक्ति के लिये सादर साधुवाद
आपकी वेदना लाखों परिवार की सच्चाई है, बधाई आ. मीना पाठक जी भावपूर्ण रचना के लिए।
अर्दिक आभार आ० अन्नपूर्णा जी
वाहहहह !!!!! आ0 मीना जी बहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना बहुत बधाई आपको ।
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