मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,
दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील भाई जी स्नेह यूँ ही सदैव बना रहे
हार्दिक आभार आदरणीया सरिता जी स्नेह यूँ ही बना रहे
गज़ल में बहुत खूबसूरत खयाल हैं। बधाई, आदरणीय अरून जी।
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,......वाह! क्या बात है
लाजवाब गजल, एक से बढकर एक शेर, दिली दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय अरुण अनंत जी
दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,........... क्या बात है..... वाह..
और जो शेर मेरे अंतर्मन को छू गया...
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है....... वाह..... बदलते गाँव के हालातों पर अच्छा शेर है आ0 अरुन भाई...... बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए....
खुबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई अरुण
आदरणीय एडमिन महोदय जी विनम्र अनुरोध है कि मतले के सानी को ऐसा कर दें एवं चिडचिढाहट को चिडचिड़ाहट कर दें.
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
अग्रिम हार्दिक आभार आपका सादर
आदरणीय भ्राताश्री आपसे सराहना पाकर फूल के कुप्पा हो गया हूँ प्रयास आपको अच्छा लगा सुखद अनुभूति हुई. आपके द्वारा बताया गया मिसरा सानी जबरदस्त है. निःसंदेह ऐसा करने से उलझन ख़तम हो जाएगी. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बना रहे
हार्दिक आभार आदरणीय वैद्यनाथ भाई जी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज जी बहुत बहुत शुक्रिया टाइपिंग मिस्टेक की वजह से ऐसा हो गया ठीक कर लेता हूँ स्नेह यूँ ही बना रहे
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