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ज़र्फ़ अंदर न पास है दिल में
आ गया हूँ ,अदब की महफ़िल में
वक़्त रद्दे अमल का आया तो
तुम रहम खोजते हो क़ातिल में
कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी
और क्या खोजते हो बिस्मिल में
फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में
अनमने से वो हाल पूछे जब
दर्द कैसे कहूँ है तिल तिल में
जो भी है आपका करम है सब
ज़र्फ़ खोजो न मुझसे जाहिल में
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ज़र्फ़ – योग्यता , सलाहियत
पास - लिहाज
रद्दे अमल – प्रतिक्रिया
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
//फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल मे// वाह क्या बात है आदरणीय गिरिराज जी
//वक़्त रद्दे अमल का आया तो
तुम रहम खोजते हो क़ातिल में// बहुत गहराई से सोचा है आदरणीय गिरिराज जी
पूरी ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें
आदरणीय बडे भाई विजय जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार !!! मुझे दुख है , जो शे र आपने पसन्द किया उसमे भाषा गत दोष निकल गया है !!!! आदरणीय क्षमा चाहूंगा !!!!
आदरणीय बैद्य नाथ भाई , आपको शे र पसन्द आये , मेरी मेहनत सफल हुई !!!! आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!
आद्रणीय अरुण भाई , रचना को आपका अनुमोदन हमेशा मेरी हिम्मत बढ़ाते रहा है !!!!! आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!
आदरणीय शकील भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया !!! ऐसे ही प्यार बनाये रखें !!!!
आदरणीय ..क्या अशआर हैं ..जिंदा अशआर
कुछ तड़प , दर्द और बेचैनी
और क्या खोजते हो बिस्मिल में....
फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में ...बहुत बहुत बधाइयाँ इन मिसरों के लिए ...वाह , बेहद उम्दा ! प्रभावी :)
आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही लाजवाब उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर खूबसूरत बन पड़े हैं दिली मुबारकबाद
फिर मुझे याद कर रहा है वो
फिर पड़ा होगा यार मुश्किल में..........
क्या बात है आदरणीय गिरिराज भंडारी सर
बेहद सटीक आब्जर्वेशन है।
//गर्क जब भी हुआ सफ़ीना तो
थोड़ी हलचल रही है साहिल में// ....वाह, वाह....बहुत ही अच्छा खयाल है।
गज़ल के लिए आपको बधाई आदरणीय गिरिराज जी।
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