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घर में वह नोट कितना बड़ा लग रहा था , मगर बाज़ार में आते ही बौना हो कर रह गया । वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या खरीदें , क्या न खरीदें । मुन्ना निश्चय ही पटाखे - फुलझड़ियों का इंतज़ार कर रहा होगा । उसकी बीवी खोवा, मिठाई , खील- बताशे और लक्ष्मी - गणेश की मूर्तियों की आशा लिए बैठी होगी, ताकि रात की पूजा सही तरीके से हो सके ।


वह बड़ी देर तक बाज़ार में इधर उधर भटकता रहा । शायद कहीं कुछ सस्ता मिल जाए । मगर भाव तो हर मिनट में चढ़ते ही जा रहे थे । हार कर उसने कुछ भी खरीदने का इरादा छोड़ दिया । मगर घर लौट कर मुन्ना और अपनी बीवी की निराश आँखों का सामना करने का साहस वह नहीं जुटा पाया । निरुद्देश्य सा वह बड़ी देर तक इधर-उधर भटकता रहा । वह नोट अभी भी उसकी जेब में पड़ा था ।


रात हो चुकी है । सारा शहर रोशनी से जगमगा रहा है । पटाखों की धमक से आसमान गूंज रहा है। मुन्ना अपने पापा का इंतजार कर रहा है और पापा नशे में चूर डगमगाते कदमो से घर की ओरे लौट रहा है । वह नोट अब उसकी जेब में नहीं है । वह जानता है कि घर में अब कोई उसके सामने नहीं पड़ेगा । उसकी पत्नी उसका खाना उसके सामने रख कर चुपचाप चली जाएगी । मुन्ना डरा-सहमा किसी कोने में दुबक जायेगा ।

.

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर' शेखर'

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Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 25, 2013 at 7:40am

बहुत बहुत धन्यवाद् आदरणीय सुशील  जोशी जी ,थोड़ी सी टंकण त्रुटि  है , आगे से विशेष ध्यान रखूँगा की ऐसा न हो. । 

Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 5:53am

मर्म को अपने अंदर समेटे, भावनाओं को सहेजे कितनी सुंदर एवं सरल भाषा का निर्वहन हुआ है आपकी इस लघु कथा पर...... एक एक अक़्स उभर कर आ रहा है आँखों के सामने..... वो बच्चे का उदास चेहरा.... वो सहमी हुई पत्नी जो न जाने मन ही मन अपने भाग्य को कोस रही होगी..... सब कुछ........... उफ.... जिन घरों में यह हक़ीकत होती होगी वहाँ भी शायद इसी प्रकार की ख़ामोशी पसर जाती होगी त्यौहारों के अवसर पर......... बहुत बहुत बधाई आ0 अरविन्द जी इस लघु कथा के लिए....

एक बात और... 'पापा नशे में चूर डगमगाते कदमो से घर की ओरे लौट रहा है' में टंकण त्रुटि है..... 'घर की ओर'........ एवं रिश्तों की कद्र करते हुए 'लौट रहे हैं' कर दें तो शायद ठीक होगा....

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 25, 2013 at 12:38am
मार्मिक लघुकथा ..... बधाई !!!

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