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जलाऊं दीपक कैसे

जलाऊं दीपक कैसे

कुल बीते दिन चार ,चमन का खोया माली

रोते पुहुप हजार ,कहाँ कैसी दीवाली

व्यथित उत्तराखंड ,तबाही कैसे भूले

आँसू मिश्रित आग ,जलेंगे कैसे चूल्हे

बिना तेल के दीप ,जलेगी कैसे बाती

बिना राग संगीत ,मुरलिया कैसे गाती

मृत्यु नृत्य निर्बाध ,जहाँ खेली थी  होली

सने लहू से द्वार ,कहाँ बैठे रंगोली

कुदरत ने दी मार ,धरा अम्बर तक रूठे

रह-रह उठते टीस ,मिले जो जख्म अनूठे

औरों का दुख देख , मनाऊं खुशियाँ  कैसे

बगल घर अन्धकार , जलाऊं दीपक  कैसे 

खुशियों के हों रंग ,भरे उनकी भी झोली

 चौखट जाए सूख   ,सजे उस पर  रंगोली

मिल जाएं परिवार ,बढ़े उनकी खुशहाली 

भरो प्रेम से जख्म , मनाओ फिर  दीवाली

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 12, 2013 at 3:04pm

प्रिय गीतिका आपने रचना के मर्म को दिल से महसूस किया और प्रतिक्रिया दी एक सच्चे पाठक का धर्म निभाया ,मुझे इस बात की तसल्ली हुई की रचना अपनी गंभीरता दिखाने में सक्षम हुई लेखन सार्थक हुआ ,दिल से आभार आपका. 

Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 2:20pm

परपीड़ा को पंक्तिबद्ध कर आपने कविधर्म निभाया| इस दीवाली के दिये को आपने सही रोशनी दी|  आपकी रचना पढ़ कर हृदय द्रवित हो आया|

आपको अनेकानेक शुभकामनायें प्रेषित हैं आदरणीया राजेश दीदी!   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:44am

राजेश मृदु जी आपको इस प्रस्तुति ने प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय तल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:42am

प्रिय राम पाठक जी इस रोला गीत ने आपके दिल को छुआ ,हृदय तल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:41am

आदरणीया अन्नापूर्णा बाजपेई जी रचना के मर्म को दिल से महसूस किया आपने ,मेरा लेखन सार्थक हुआ दिल से आभार आपका.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:39am

प्रिय संदीप कुमार जी इस उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:38am

आदरणीय विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:34am

एक सच्चे पाठक का धर्म निभाते हुए रचना के मर्म को दिल से महसूस कर ,जीतेन्द्र गीत जी ,आपकी प्रतिक्रिया ने अभिभूत किया,मेरा लेखन सार्थक हुआ,हृदय तल से आभार आपका.   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 9:01am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी इस  रोला गीत  के मर्म ने आपके दिल को प्रभावित किया मेरा लेखन सार्थक हुआ हृदय तल से आभारी हूँ. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 1, 2013 at 8:59am

आदरणीय सुशील जोशी जी रचना का मर्म आपको प्रभावित कर सका ,लेखन सार्थक हुआ ,दिल से आभार आपका. 

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