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दहकती ज्‍वाला,
तेज प्रकाश
जग को,हमकेा,आपकेा
सबकेा देता उजाला है
मगर बिल्‍कुल तन्‍हा
बिल्‍कुल अकेला
ना किसी का प्‍यार
ना पुकार,ना अर्चना,
थक कर चूर होता है
विश्राम चाहता है
धरती के पार
पर्वतों के पीछे
मगर सर्वशक्ति मान केा
दहकते  रूप में,
अंहकार में
नहीं मिल पाता आश्रय है।
थका हारा ये सूर्य परेशान
दो पल धरती की गोद में
पर्वत केा ओट में
विश्राम करने को
तब समेट लेता है
अधकती ज्‍वाला को
अपने अंहकार केा
पने अंगार केा
तब मिल पाता है
उसे सकून के दो पल
विश्राम का स्‍थान
ब मिलता है प्‍यार
तब होता है पूजन श्रधा
और विश्‍वास से अखंड
तब मिला है
सर्वशक्ति मान को
मिलता है समाज में स्‍थान
सम्‍मान,
क्‍योकि हम शाति के प्रतिक है
उग्र हमारा स्‍वभाव नहीं
हमें तेा बस,शांति,शीतलता से
है प्‍यार और यहीं है
अखंड का अंहकार
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by बृजेश नीरज on November 1, 2013 at 7:47pm

भाव अच्छे हैं. ठीक पक नहीं पाई रचना, आंच से जल्दी उतार ली गयी. 

बहरहाल इस कहन पर आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 31, 2013 at 2:06pm

आदरणीय बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति हुई है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 31, 2013 at 9:09am

सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति | हार्दिक बधाई श्री अखंड गहमरी जी 

Comment by ram shiromani pathak on October 30, 2013 at 8:37pm

आदरणीय अखंड  जी बहुत ही सुन्दर  प्रस्तुति  है//// बहुत बहुत   बधाई आपको //// सादर 

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:04pm

खूबसूरत भावों से सजी इस अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई , आ0 अखंड गहमारी जी । 

Comment by Akhand Gahmari on October 29, 2013 at 11:21pm

नमस्‍कार माननीय सुशील जी हम प्रयास करते है कि टंकण गलती ना हो फिर भी कही ना कही हो जा रही है आपके मार्ग दर्शन के लिये हम आपके आभारी है आप का सहयोग सदैव हमारे साथ रहेगा हम ऐसी आशा करते है

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 11:11pm

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है आ0 अखंड भाई जी..... बहुत बहुत बधाई............. केवल टंकण त्रुटि है कहीं कहीं पर.... शायद 'ओ' की मात्रा में कुछ कठिनाई हो रही है आपको..... विभिन्न सॉफ्टवेयरों की मदद से इस दोष से निजात पाई जा सकती है....

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