For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दहकती ज्‍वाला,
तेज प्रकाश
जग को,हमकेा,आपकेा
सबकेा देता उजाला है
मगर बिल्‍कुल तन्‍हा
बिल्‍कुल अकेला
ना किसी का प्‍यार
ना पुकार,ना अर्चना,
थक कर चूर होता है
विश्राम चाहता है
धरती के पार
पर्वतों के पीछे
मगर सर्वशक्ति मान केा
दहकते  रूप में,
अंहकार में
नहीं मिल पाता आश्रय है।
थका हारा ये सूर्य परेशान
दो पल धरती की गोद में
पर्वत केा ओट में
विश्राम करने को
तब समेट लेता है
अधकती ज्‍वाला को
अपने अंहकार केा
पने अंगार केा
तब मिल पाता है
उसे सकून के दो पल
विश्राम का स्‍थान
ब मिलता है प्‍यार
तब होता है पूजन श्रधा
और विश्‍वास से अखंड
तब मिला है
सर्वशक्ति मान को
मिलता है समाज में स्‍थान
सम्‍मान,
क्‍योकि हम शाति के प्रतिक है
उग्र हमारा स्‍वभाव नहीं
हमें तेा बस,शांति,शीतलता से
है प्‍यार और यहीं है
अखंड का अंहकार
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on November 1, 2013 at 7:47pm

भाव अच्छे हैं. ठीक पक नहीं पाई रचना, आंच से जल्दी उतार ली गयी. 

बहरहाल इस कहन पर आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 31, 2013 at 2:06pm

आदरणीय बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति हुई है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 31, 2013 at 9:09am

सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति | हार्दिक बधाई श्री अखंड गहमरी जी 

Comment by ram shiromani pathak on October 30, 2013 at 8:37pm

आदरणीय अखंड  जी बहुत ही सुन्दर  प्रस्तुति  है//// बहुत बहुत   बधाई आपको //// सादर 

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:04pm

खूबसूरत भावों से सजी इस अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई , आ0 अखंड गहमारी जी । 

Comment by Akhand Gahmari on October 29, 2013 at 11:21pm

नमस्‍कार माननीय सुशील जी हम प्रयास करते है कि टंकण गलती ना हो फिर भी कही ना कही हो जा रही है आपके मार्ग दर्शन के लिये हम आपके आभारी है आप का सहयोग सदैव हमारे साथ रहेगा हम ऐसी आशा करते है

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 11:11pm

बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है आ0 अखंड भाई जी..... बहुत बहुत बधाई............. केवल टंकण त्रुटि है कहीं कहीं पर.... शायद 'ओ' की मात्रा में कुछ कठिनाई हो रही है आपको..... विभिन्न सॉफ्टवेयरों की मदद से इस दोष से निजात पाई जा सकती है....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service