पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
मौलिक / अप्रकाशित
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
Comment
वाह वाह.... इस सुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई.....
आदरणीय रविकर ही रचना और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय रविकर सर बेहद उम्दा कुण्डलिया छंद साधुवाद हार्दिक बधाई स्वीकारें
आदरणीय रविकर जी,बहुत सुन्दर कुंडलिया आपको ढेरों बधाई.................
आदरणीय रवि भाई , बहुत सुन्दर विषय पर लाजवब कुंडलिया रचना के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!!
आभार आदरणीय अखिलेश जी, आदरणीय लक्षमण जी,
आदरेया कुंती जी-
बहुत बहुत आभार
वाह ! शब्द विश्लेष्ण के पारखी श्री रविकर जी को साधुवाद | दीपावली की किरने आपको प्रकाशित करती रहे |
पाव पाव क्या खा सके, कटे जेब अब तेज
एक प्लेट में सब चखे, जैसे सब अंग्रेज
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |.....अति सुंदर
शभ्कामनाएं
कुंती.
रविकर भाई दीवाली की शुभकामना और कुण्डलियाँ की बधाई।
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