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पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-

पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |


सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |


जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||

मौलिक / अप्रकाशित

वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध

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Comment

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Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 11:48am

वाह वाह.... इस सुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई.....

Comment by Sachin Dev on November 6, 2013 at 6:56pm

आदरणीय रविकर ही रचना और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ! 

Comment by बृजेश नीरज on November 6, 2013 at 4:54pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 4:05pm

आदरणीय रविकर सर बेहद उम्दा कुण्डलिया छंद साधुवाद हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by ram shiromani pathak on November 4, 2013 at 9:02pm

आदरणीय रविकर जी,बहुत सुन्दर  कुंडलिया  आपको ढेरों बधाई.................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 4, 2013 at 5:15pm

आदरणीय रवि भाई , बहुत सुन्दर विषय पर लाजवब कुंडलिया रचना के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!!

Comment by रविकर on November 4, 2013 at 5:15pm

आभार आदरणीय अखिलेश जी, आदरणीय लक्षमण जी,

आदरेया कुंती जी-
बहुत बहुत आभार

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 4, 2013 at 3:45pm

वाह ! शब्द विश्लेष्ण के पारखी श्री रविकर जी को साधुवाद | दीपावली की किरने आपको प्रकाशित करती रहे |

पाव पाव क्या खा सके, कटे जेब अब तेज

एक प्लेट में सब चखे, जैसे सब अंग्रेज 

Comment by coontee mukerji on November 4, 2013 at 2:13pm

पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |.....अति सुंदर

शभ्कामनाएं

कुंती.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 4, 2013 at 2:03pm

रविकर भाई दीवाली की शुभकामना और  कुण्डलियाँ की बधाई।

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