For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस नदिया की धारा में

कितने टापू हैं उभरे

कहीं हुई उथली-छिछली 

तो कहीं भँवर हैं गहरे

 

पंख नदारद मोरों के 

तितली का है रंग उड़ा

भौंरा भी अब ये सोचे

आखिर कैसे फूल झड़ा

 

चिड़ियों की गुनगुन गायब

यहाँ नहीं अब पग ठहरे

 

कल-कल करती जलधारा

अब सहमी औ ठिठकी सी

सिकुड़ी-सिमटी देह लिए

नदिया चलती, बचती सी

 

इक मरीचिका सी छलने

बीज मरू के हैं अँकुरे

 

काली सी बदरी छाई

नील गगन भी स्याह हुआ

कोयल, पपिहा आस लिए

अब तो फूटे फिर अँखुआ

 

सीप खड़ी तट पर सोचे

कब कोई इक बूँद झरे

 

          - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 831

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 6, 2013 at 6:35pm

प्रकृति और जीव जंतु पर ग्रीष्म के प्रभाव का सुंदर वर्णन गीत के माध्यम से । बधाई बृजेश भाई।

Comment by Sachin Dev on November 6, 2013 at 6:19pm

सादर आदरणीय बृजेश जी..... बेहतरीन गीत पर हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by बृजेश नीरज on November 6, 2013 at 4:50pm

आदरणीय अरुण भाई आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 6, 2013 at 4:49pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 6, 2013 at 4:49pm

आदरणीय नीरज मिश्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 6, 2013 at 4:48pm

आदरणीय बसंत जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:51pm

आदरणीय बृजेश भाई जी बहुत ही सुन्दर गीत रचा है आपने पढ़कर दिल खुश हो गया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by Meena Pathak on November 6, 2013 at 12:39pm

सीप खड़ी तट पर सोचे

कब कोई इक बूँद झरे..............बहुत सुन्दर गीत, बधाई आप को 

Comment by Neeraj Nishchal on November 6, 2013 at 11:33am

बहुत ही बेहतरीन लिखा है आदरणीय बृजेश जी
और बहुत सार्थक भी लिखा है इसके लिए आप को
तहे दिल से शुभकामनाएं

Comment by बसंत नेमा on November 6, 2013 at 11:29am

आ0 ब्रजेश जी बहुत खूबसूरत रचना ,,,बहुत बहुत बधाई ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
18 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service