बताशा लगती हो तुम
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हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,
घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,
जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,
तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,
आँखें मूँद कर मृतप्राय हुए चित में यूँ,
सुंदर, सजग अभिलाषा लगती हो तुम,
नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,
चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।
----------------------------------- सुशील जोशी
“मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
हिंदी के सामान प्यारी ,तिमिर हटाने वाली ,आशा जगाने वाली ,अभिलाषा वाह वाह सुनकर कौन पत्नी खुश नहीं हो जायेगी...
नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,
चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।------हाहाहा देखियेगा डाइबिटीज न हो जाये :):):)
आदरणीय सुशील भाई जी,सुन्दर प्रस्तुति …बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर
रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 केवल भाई जी....
वाह वाह..... क्या खूब कहा है आ0 अरुन निगम जी..... वाह.... आपका अनुमोदन तो सचमुच आशीर्वाद स्वरूप होता है...... बहुत बहुत आभार.....
रचना पर आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आ0 जितेन्द्र भाई जी......
आदरणीय सुशील भाई जी, बहुत खूब! सुन्दर विचार। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
सुन्दर सुशील सभी,हमें उपमान लगे,
भीग गया तन-मन, वाह रसधार में
प्रेम में जो डूब जाये,प्रेम का बताशा खाये
तट में वो मजा कहाँ,जो है मँझधार में...................
आदरणीय डा. गोपाल जी// मैंने पहली बार किसी को अपनी प्रेमिका हिंदी जैसी प्यारी कोमल सुरीली व् मृदु क्हते सुना//की प्रतिक्रिया के साथ सहमत हूँ, व् मैंने भी बताशा पहली बार सुना, आदरणीय शुशील जी रचना में इन दोनों कहन से एक अजीब अंदाज में सुन्दरता का बखान हो रहा है, वैसे ही जैसे कोई मासूम बच्चा, अपनी मासूमियत में किसी की तारीफ करे, पूर्णत: निर्मल मन से..रचना पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
बहुत बहुत आभार आपका आ0 अखिलेश जी.....
स्नेहिल टिप्पणी हेतु सादर आभार आ0 अरुन भाई......
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