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बताशा लगती हो तुम

बताशा लगती हो तुम

.

हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,

घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,

जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,

तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,

आँखें मूँद कर मृतप्राय हुए चित में यूँ,

सुंदर, सजग अभिलाषा लगती हो तुम,

नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,

चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।

----------------------------------- सुशील जोशी

“मौलिक व अप्रकाशित”

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Comment by rajesh kumari on November 10, 2013 at 8:58pm

हिंदी के सामान प्यारी ,तिमिर हटाने वाली ,आशा जगाने वाली ,अभिलाषा वाह वाह सुनकर कौन पत्नी खुश नहीं हो जायेगी... 

नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,

चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।------हाहाहा देखियेगा डाइबिटीज न हो जाये :):):)

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:23pm

आदरणीय सुशील भाई जी,सुन्दर प्रस्तुति …बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर 

Comment by Sushil.Joshi on November 10, 2013 at 7:29pm

रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार आ0 केवल भाई जी....

Comment by Sushil.Joshi on November 10, 2013 at 7:28pm

वाह वाह..... क्या खूब कहा है आ0 अरुन निगम जी..... वाह.... आपका अनुमोदन तो सचमुच आशीर्वाद स्वरूप होता है...... बहुत बहुत आभार.....

Comment by Sushil.Joshi on November 10, 2013 at 7:26pm

रचना पर आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आ0 जितेन्द्र भाई जी......

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 10, 2013 at 12:49pm

आदरणीय सुशील भाई जी, बहुत खूब! सुन्दर विचार। हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 8:35am

सुन्दर सुशील सभी,हमें उपमान लगे,

भीग गया तन-मन, वाह रसधार में 

प्रेम में जो डूब जाये,प्रेम का बताशा खाये 

तट में वो मजा कहाँ,जो है मँझधार में................... 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 10, 2013 at 12:38am

आदरणीय डा. गोपाल जी// मैंने   पहली  बार किसी को  अपनी प्रेमिका हिंदी  जैसी  प्यारी कोमल सुरीली व् मृदु क्हते सुना//की प्रतिक्रिया के साथ सहमत हूँ, व् मैंने भी बताशा पहली बार सुना, आदरणीय शुशील जी रचना में इन दोनों कहन से एक अजीब अंदाज में सुन्दरता का बखान हो रहा है, वैसे ही जैसे कोई मासूम बच्चा, अपनी मासूमियत में किसी की तारीफ करे, पूर्णत: निर्मल मन से..रचना पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:14pm

बहुत बहुत आभार आपका आ0 अखिलेश जी.....

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:14pm

स्नेहिल टिप्पणी हेतु सादर आभार आ0 अरुन भाई......

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