For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वप्न विलक्षण: ( विजय निकोर )

स्वप्न  विलक्षण:   

 

  स्मृतिओं की सुखद फुहारें

   झिलमिलाती चाँदनी

   की किरणों की झालरें

   अनन्त तारिकाएँ

   सपने में ... और सपने में साक्षात

   तुम ... कब से

 

   पूनों में, अमावस में, मध्य-रात्रि के सूने में

   इस एक सपने से तुमने, मुझसे

   रखा है अविरल अटूट संबंध

   वरना स्मृति-पटल पर चन्द्र-किरण-सा

   कभी प्रकाश-दीप-सा तैरता

   यूँ लौट-लौट न आता ...

 

   मेरे अधबनेपन का बिखराव

   चेहरे पर अतीत का रुँधा हुआ उच्छवास

   इस पर भी भावों का भावों से मेल ...

   इतनी आत्मीयता ... सपने में ?

   अभाव ? कैसा, किसका अभाव ?

   तुम्हारा ?  नहीं, कभी नहीं

 

   ज़िन्दगी के तंग तहखानों से

   गुज़रती कोई रोशनी, देखता हूँ

   उद्दीप्त सपने में प्रज्ज्वलित

   कल्पना की दीप्ति

   प्रकाश-वर्षा-सी

   तुम ... दीप्तिमान रत्न

 

   उमड़ते स्नेह का मिठास आँखो में

   मनमंदिर में तुम्हारे .. स्नेह-अक्षर

   जैसे हँसते हुए फूलों के पराग-स्तर

   प्रकाश-पर्व के बाद भी हर वर्ष

   दो नयन तुम्हारे, दो नयन हमारे

   यह अनमोल दिए  मुस्कराते रहे

 

   स्मृतिओं की सुखद फुहारें

   सपने में ... सपने में तुम

   कब से ...

 

            -----

                                         -- विजय निकोर

 

 

   (मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 961

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on November 12, 2013 at 8:54pm

आहा... भावों की बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति है आपकी इस रचना में आ0 विजय जी.... शब्द संचयन भी जानदार...... वाह.... बहुत बहुत बधाई इस रचना हेतु.....

Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 5:41pm

सुंदर शब्द चयन और उत्तम भाव से ओतप्रोत कविता|

बधाई आ0 विजय जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 12, 2013 at 4:30pm

 प्रकाश-पर्व के बाद भी हर वर्ष

   दो नयन तुम्हारे, दो नयन हमारे

   यह अनमोल दिए  मुस्कराते रहे..आदरणीय सर ..बेहद सुंदर रचना की इन पंक्तियों  ने मन को छू लिया ..सदर प्रणाम के साथ 

Comment by विजय मिश्र on November 11, 2013 at 6:23pm
आज मैं निःसंकोच कहता हूँ ...... कि ...... आपकी रचनाओं में अमृताजी के अक्स साफ उभरकर आते हैं . शब्दों में ताश के पत्ते की तरह भाव को बिखेरना फिर अचानक समेटना ...... सबकुछ तो वैसा ही है , बहुत खूब विजयजी .मैं खुद भी उनके इस कमाल का कायल रहा हूँ . ईश्वर इसे और जीवन्तता दे . एक महान का अनुसरण है ,उसकी अभिव्यंजनाओं का छाप है ,मुझे अतीत में आपसे पूछे मेरे एक प्रश्न का उत्तर आपकी इस कविता ने दे दिया.
Comment by Meena Pathak on November 11, 2013 at 3:49pm

उमड़ते स्नेह का मिठास आँखो में

   मनमंदिर में तुम्हारे .. स्नेह-अक्षर

   जैसे हँसते हुए फूलों के पराग-स्तर

   प्रकाश-पर्व के बाद भी हर वर्ष

   दो नयन तुम्हारे, दो नयन हमारे

   यह अनमोल दिए  मुस्कराते रहे

 

   स्मृतिओं की सुखद फुहारें

   सपने में ... सपने में तुम

   कब से ........................................बहुत सुन्दर भावों से ओत प्रोत रचना | बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 11, 2013 at 9:33am

स्मृति पटल पर उभरे स्वप्निल अहसास को अनुभव करते हुए सुन्दर आत्मीय भाव उकेरने में सफल रहे है आद श्री विजय निकोरे जी -

 उमड़ते स्नेह का मिठास आँखो में

   मनमंदिर में तुम्हारे .. स्नेह-अक्षर

   जैसे हँसते हुए फूलों के पराग-स्तर

   प्रकाश-पर्व के बाद भी हर वर्ष

   दो नयन तुम्हारे, दो नयन हमारे

   यह अनमोल दिए  मुस्कराते रहे

   स्मृतिओं की सुखद फुहारें

   सपने में ... सपने में तुम ---इसे पढ़कर मेरा मन भी मदुर स्म्रतियों में खो गया | बहुत बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 11, 2013 at 12:15am

मेरे अधबनेपन का बिखराव

   चेहरे पर अतीत का रुँधा हुआ उच्छवास

   इस पर भी भावों का भावों से मेल ...

   इतनी आत्मीयता ... सपने में ?

   अभाव ? कैसा, किसका अभाव ?

   तुम्हारा ?  नहीं, कभी नहीं

बेहद गहन विश्वास से शब्दों का चयन,उतने ही सुंदर भाव, बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:26pm

 ज़िन्दगी के तंग तहखानों से

   गुज़रती कोई रोशनी, देखता हूँ

   उद्दीप्त सपने में प्रज्ज्वलित

   कल्पना की दीप्ति

   प्रकाश-वर्षा-सी

   तुम ... दीप्तिमान रत्न//// बहुत ही  सुन्दर शब्द  संयोजन 

बहुत ही  सुन्दर  प्रस्तुति आदरणीय विजय  निकोर  जी,बहुत बहुत बधाई। …सादर 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2013 at 9:36pm

 प्रकाश-पर्व के बाद भी हर वर्ष

   दो नयन तुम्हारे, दो नयन हमारे

   यह अनमोल दिए  मुस्कराते रहे

 

   स्मृतिओं की सुखद फुहारें

   सपने में ... सपने में तुम

   कब से ...

 वाह वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति अंत ने तो मन मोह लिया |बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by annapurna bajpai on November 10, 2013 at 8:57pm

आदरणीय विजय जी क्या ही सुंदर रचना हुई है , बहुत बधाई आपको । आपकी लेखनी को नमन । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service