For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है

चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।

बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।

वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।

हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।

माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।

अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 829

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 12, 2013 at 8:11am

आदरणीय गिरिराज सर दरअस्ल "चेह्रा" की तरह कहा जाता है,जिसे "चेहरा" लिखा जाता है लेकिन इसका वज्न 22 ही होगा न कि 212,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 12, 2013 at 7:58am

आदरणीय कुमार भाई , जो मिसरा सामने है उसके अनुसार , चेहरा -212 होगा आप  चेहरा को 22 मे बान्ध करे है , ये कितना सही कितना गलत है मै नही कह सकता !!!!! किसी बडे शायर ने ऐसा किया होगा तो सही भी हो सकता है !!!!! 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:20am

उत्साहवर्धन हेतु आपका आभारी हूँ मित्र राम पाठक जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:18am

बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेई जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:17am

आदरणीय निलेश जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:16am

सादर आभार आदरणीय मोहन जी..........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:16am

हार्दिक आभार आदरणीय उमेश कटारा जी.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:14am

आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ। एक मनोभाव को शब्द देने की कोशिश की है बस। आपकी प्रतिक्रिया मनोबल को बढ़ानेवाली है। दिल से धन्यवाद आपको............

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 11, 2013 at 8:06am

आदरंणीय  Shijju Shakoor जी, आदरणीया rajesh kumari जी एवं आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सर्वप्रथम तो प्रोत्साहन एवं स्नेह हेतु आप सभी का हृदय से आभार......

तकनीकी पक्षपर आपसे यहाँ परामर्श अपेक्षित है, मैंने तीसरे शेर को इस तरह से लिखा है

हँस रहा चेह/ रा मेरा तुम/ तो बस इतना/ जानते,
2122/ 2122/ 2122/ 212

हँस रहा चह/ रा मेरा तुम/ तो बसितना/ जानते
2122/ 2122/ 2122/ 212

चेहरा को "चहरा" की तरह उपयोग होते कहीं-कहीं देखा है सो वैसे ही उपयोग किया और "बस इतना" को "बसितना" की तरह (शायद इस नियम को आलिफ वस्ल कहा जाता है) ग़ज़ल की बारिकियाँ तो नहीं जानता अतः मार्गदर्शन किया जाए........सादर

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:28pm

आदरणीय अजीतेंदु जी बढ़िया ग़ज़लबहुत बहुत बधाई। …सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service