चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।
बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।
वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।
हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।
माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।
अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय गिरिराज सर दरअस्ल "चेह्रा" की तरह कहा जाता है,जिसे "चेहरा" लिखा जाता है लेकिन इसका वज्न 22 ही होगा न कि 212,
आदरणीय कुमार भाई , जो मिसरा सामने है उसके अनुसार , चेहरा -212 होगा आप चेहरा को 22 मे बान्ध करे है , ये कितना सही कितना गलत है मै नही कह सकता !!!!! किसी बडे शायर ने ऐसा किया होगा तो सही भी हो सकता है !!!!!
उत्साहवर्धन हेतु आपका आभारी हूँ मित्र राम पाठक जी.........
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आदरणीया अन्नपूर्णा वाजपेई जी.........
आदरणीय निलेश जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..........
सादर आभार आदरणीय मोहन जी..........
हार्दिक आभार आदरणीय उमेश कटारा जी.........
आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ। एक मनोभाव को शब्द देने की कोशिश की है बस। आपकी प्रतिक्रिया मनोबल को बढ़ानेवाली है। दिल से धन्यवाद आपको............
आदरंणीय Shijju Shakoor जी, आदरणीया rajesh kumari जी एवं आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सर्वप्रथम तो प्रोत्साहन एवं स्नेह हेतु आप सभी का हृदय से आभार......
तकनीकी पक्षपर आपसे यहाँ परामर्श अपेक्षित है, मैंने तीसरे शेर को इस तरह से लिखा है
हँस रहा चेह/ रा मेरा तुम/ तो बस इतना/ जानते,
2122/ 2122/ 2122/ 212
हँस रहा चह/ रा मेरा तुम/ तो बसितना/ जानते
2122/ 2122/ 2122/ 212
चेहरा को "चहरा" की तरह उपयोग होते कहीं-कहीं देखा है सो वैसे ही उपयोग किया और "बस इतना" को "बसितना" की तरह (शायद इस नियम को आलिफ वस्ल कहा जाता है) ग़ज़ल की बारिकियाँ तो नहीं जानता अतः मार्गदर्शन किया जाए........सादर
आदरणीय अजीतेंदु जी बढ़िया ग़ज़ल, बहुत बहुत बधाई। …सादर
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