For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देश काल निमित्त की सीमाओं में जकड़े तुम 

और तुम्हारे भीतर एक चिरमुक्त 'तुम'

-जिसे पहचानते हो तुम !

उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा 

एक अभिन्न को-

खामोश मन मंथन की गहराइयों में 

चिंतन की सर्वोच्च ऊचाइंयों में 

पराचेतन की दिव्यता में.....

पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'

क्या पहचान भी पाओगे 

अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-

एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 1255

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 7:33pm

सघन भावों की अति सुंदर अभव्यक्ति हुई है, आदरणीया प्राची जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on November 25, 2013 at 7:59am

यह प्रश्न शाश्वत है! आकांक्षाओं के मोह में जकड़े हम इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में ही जीवन को जीते चले जाते हैं. 'मैं' या 'तुम' की तलाश पूरी नहीं हो पाती.

बहुत ही सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Arun Sri on November 20, 2013 at 1:19pm

व्यक्त और अव्यक्त का यही अंतर्द्वंद तो मानव जीवन का मूल व्यव्हार है ! परमानन्द कि प्राप्ति है इसे समझ पाना , इस व्यूह से निकल पाना ! कविताओं में "बुद्ध" की तरह कविता ! गहन और सूक्ष्म ! सुन्दर !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 20, 2013 at 12:40pm

मैं, तुम और हम प्रत्येक मानव के अंदर है, किसे कब जागृत किया जाय यह व्यक्ति पर निर्भर करता है, साथ ही यही कारक व्यक्ति की पहचान भी बनते हैं, एक अच्छी कविता पर बधाई आदरणीया डॉ प्राची जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:36pm
रचना अनुमोदित करने के लिए धन्यवाद आ० प्रदीप शुक्ला जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:35pm

रचना आपको सार्थक लगी यह मेरे लिए संतोष की बात है आ० वन्दना जी 

सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:33pm

रचना की अंतर्धारा भाव दशा व मर्म को स्पर्श करने के लिए हार्दिक आभार आ० शिज्जू जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:32pm

अभिव्यक्ति सन्निहित कथ्य की सार्थकता अनुमोदित करने के लिए हार्दिक आभार आ० संदीप पटेल जी 

Comment by Abhinav Arun on November 15, 2013 at 9:40am

संशय , संदेह , शक्तियों- आसक्तियों की अबूझ वीथिकाओं में प्रवाहित जल सा ही तो है जीवन ...वश कहाँ ..विश्राम कहाँ ...पल भर ठहरे तो जाने उस ''तुम ''को ...गूढ़ रहस्य भाव को चेतना के स्तर पर उभरने और जागृत करने में सफल काव्य कृति के लिए बहुत बधाई आ. डॉ साहिबा !!

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 4:55am

पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'

क्या पहचान भी पाओगे 

अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-

एक सदेह व्यक्त प्रारूप में....... सचमुच यह प्रश्न विचारणीय है...... क्या सचमुच हम स्वयं को पहचान पाए हैं..... बहुत बहुत बधाई आ0 डॉ. प्राची जी इस लघु किंतु गहन प्रस्तुति हेतु....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
14 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
20 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service