टूटी चूड़ियाँ
बह गया सिन्दूर
साथ ही टूटा
अनवरत
यंत्रणा का सिलसिला
बह गया फूटकर
रिश्तों का एक घाव
पिलपिला
अब चाँद के संग नहीं आएगा
लाल आँखें लिए
भय का महिषासुर
कभी कभी अच्छा होता है
असर
जहरीली शराब का ..
... नीरज कुमार ‘नीर’
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब ..
आदरणीय नीरज जी ..बहुत व्यंग्यात्मक तरीके से सम्बेदना से जुड़े किसी पहलू को उजागर किया है आपने ..आपको हार्दिक बधाई
अब चाँद के संग नहीं आएगा
लाल आँखें लिए
भय का महिषासुर
कभी कभी अच्छा होता है
असर
जहरीली शराब का ..
प्रतिदिन के इस भय से छुटकारा, हृदयस्पर्शी पंक्तियों पर बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी
एक बेहतरीन कटाक्ष ! बधाई स्वीकारें
आदरणीय नीरज भाई , लाजवाब रचना की है , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!!!
आदरणीय मीना जी हार्दिक आभार ..
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार ..
आभार आदरणीय शिज्जू जी
सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय
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