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दिल के ज़ख्मों से उठी जब से गुलाबी ख़ुशबू,
शह्र में फ़ैल गई मेरी वफ़ा की ख़ुशबू.
...
ये महक, बात नहीं सिर्फ हिना के बस की,
गोरी के हाथों महकती है पिया की ख़ुशबू.
...
फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब,
फूल से आने लगी आज क़िताबी ख़ुशबू.
...
वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू.
....
चंद लम्हात गुज़ारे थे तुम्हारे नज़दीक़,
बस उसी रोज़ से पहनी है तुम्हारी ख़ुशबू.
....
दिल के जंगल में खिला याद का महुआ जो कभी,
‘नूर’ को याद बहुत आई कुँवारी ख़ुशबू.
..........................................................
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू..........यह शेर बहुत पसंद आया
उम्दा गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय निलेश जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..
फूल को ख़ुद में समेटे हुए थी कोई क़िताब,
फूल से आने लगी आज क़िताबी ख़ुशबू.
...
वो कडी धूप में निकले तो हुआ यूँ महसूस,
जैसे निकली हो पसीने में नहाती ख़ुशबू. ........उम्दा अशआर ...वाह जी वाह
नूर ' साहब , अब तो हर जेहन में फैली है इस ग़ज़ल की खुशबू! बहुत बहुत बधाई आपको
//दिल के ज़ख्मों से उठी जब से गुलाबी ख़ुशबू,
शह्र में फ़ैल गई मेरी वफ़ा की ख़ुशबू.// बहुत खूब
बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय निलेशजी बधाई आपको
उम्दा गज़ल | हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय
आदरणीय नीलेश भाई , बहुत बेहतरीन गज़ल कही है , वाह भाई क्या बात है !!!!!
ये महक, बात नहीं सिर्फ हिना के बस की,
गोरी के हाथों महकती है पिया की ख़ुशबू. ------------- लाजवाब , बहुत नाज़ुक बात कही है !!!! दिल से बधाई !!!!
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