उठेगी जब तेरी अर्थी, ये नज्ज़ारा नहीं होगा,
चिता को आग देगा, क्या, तेरा प्यारा नहीं होगा?
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हमारे आंसुओं को तुम जगह लब पर ज़रा दे दो.
यकीं जानों कि इनका ज़ायका खारा नहीं होगा.
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नज़र मुझ से मिलाकर अब ज़रा वो बेवफ़ा देखे,
फिर उसके पास मरने के सिवा चारा नहीं होगा.
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बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,
जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा.
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ठहरता ही नहीं है ये कहीं भी एक भी पल को,
समय सा कोई भी फक्कड़ या बंजारा नहीं होगा.
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ज़रा सोचो, किसी को यूँ ही बेचारा न तुम कह दो,
कि साया माँ का जिस पे हो वो बेचारा नहीं होगा.
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वो इंसाँ हो नहीं सकता, ख़ुदा होगा यक़ीनन वो,
लड़ाई खुद की खुद से, जो कभी हारा नहीं होगा.
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मिली है जिंदगी तुम नेक नीयत से बढ़ो आगे,
तुम्हारे पास मौका फिर ये दोबारा नहीं होगा.
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तुम्हारे बाद ऐ ग़ालिब सुखनवर होंगे कितनें ही,
पर उनकी रोशनाई में वो उजियारा नहीं होगा.
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चलो अंधी सुरंग के पार चलते है जहां बिखरा
ख़ुदा का ‘नूर’ होगा और अँधियारा नहीं होगा.
............................................................
मौलिक व अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
Comment
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। उम्दा गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
धन्यवाद आ. Dr.Prachi Singh साहिबा
मिली है जिंदगी तुम नेक नीयत से बढ़ो आगे,
तुम्हारे पास मौका फिर ये दोबारा नहीं होगा............वाह!
चलो अंधी सुरंग के पार चलते है जहां बिखरा
ख़ुदा का ‘नूर’ होगा और अँधियारा नहीं होगा..........बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० नीलेश जी ,
कई अशआर बहुत पसंद आये.
हार्दिक दाद क़ुबूल कीजिये
शुक्रिया मित्रो ...
आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी ..विशेष आभार .. इसे "जहा पर बस" किये लेता हूँ ...कैसा रहेगा???
मिली है जिंदगी तुम नेक नीयत से बढ़ो आगे,
तुम्हारे पास मौका फिर ये दोबारा नहीं होगा......लाजवाब
बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,
जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा........वाह क्या कहने शानदार जिंदाबाद ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई !!
आदरणीय बहुत ही उम्दा ग़ज़ल वाह वाह वाह ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं. अंतिम शेर एक बार पुनः देख लें तकाबुले रदीफ़ आ रहा है.
धन्यवाद मित्रो .... आदरणीय गिरिराज जी शायद कन्फ्यूज़न अनुस्वार के कारण है ... शायद सुरँग लिखना उपयुक्त होता, मै बदलाव कर लेता हूँ ... आभार
वाह वाह..... हर एक शेर बहुत ही उम्दा बन पड़ा है आ0 निलेश जी.... इस रचना के लिए हार्दिक बधाई.....
आदरणीय निलेश खुबसूरत गजल कही है आपने ये शेर मन को छू गया -
बहुत से लोग दुनियाँ में भटकते है मुहब्बत में,
जहां भर में कोई सूरज सा आवारा नहीं होगा.
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