२१२२, २१२२, २१२
चाँद सूरज और सितारे आ गए,
ख्व़ाब में क्या क्या नज़ारे आ गए.
.
ख़ूब मौका डूबने का था मिला,
और हम फिर भी किनारे आ गए.
.
जब नज़र की बात नज़रों नें सुनी,
दरमियाँ क्या कुछ इशारे आ गए.
.
है समाई धडकनों में धडकनें,
पास वो इतने हमारे आ गए.
.
जब मिला ग़म या ख़ुशी कोई मिली,
आँखों में दो अश्क़ खारे आ गए.
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मौलिक व अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
Comment
धन्यवाद
बहुत सुंदर गज़ल कही है आ0 नीलेश जी....
सादर आभार, आदरणीय
शुक्रिया सभी को ... व्यस्तता के चलते समुचित आभार प्रदर्शित नहीं कर पाया इसका खेद है ... आशा है आप लोग खुले हरध्य से क्षमा के देंगे ... आदरणीय सौरभ जी .. आप का सुझाव आज्ञा तुल्य है...मूल प्रति में संशोधन किये लेता हूँ
आभार
आदरणीय निलेश जी कमाल की ग़ज़ल हुई है सभी शेर खूबसूरत बेमिसाल हैं ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.
बहुत ही खूबसूरत गज़ल है, बधाई, आदरणीय नीलेश जी।
सादर,
विजय निकोर
आपकी इस ग़ज़ल पर मन झूम गया आदरणीय नीलेश नूरजी. वाह वाह वाह !
यह अवश्य है कि और को औ’ ही रहने देना था. औ’ खूब मान्य है. बाकी तो फिर से वाह वाह !
सादर
शुक्रिया सभी का ... आभार
आदरणीय इस शानदार गजल हेतु बधाई सप्रेषित करता हूँ।
- ख़ूब मौका डूबने का था मिला,
और हम फिर भी किनारे आ गए. . Yah attitude, shubhaanallaah.
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