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ग़ज़ल : जब से हुई मेरे हृदय की संगिनी मेरी कलम

बह्र : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२

 

जब से हुई मेरे हृदय की संगिनी मेरी कलम

हर पंक्ति में लिखने लगी आम आदमी मेरी कलम

 

जब से उलझ बैठी हैं उसकी ओढ़नी, मेरी कलम

करने लगी है रोज दिल में गुदगुदी मेरी कलम

 

कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला

दिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम

 

यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा

तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम

 

उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा

क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी, मेरी कलम

-----

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:11pm

Saurabh Pandey जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब। स्नेह बना रहा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:10pm

Dr.Prachi Singh जी, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 8:10pm

 annapurna bajpai जी, बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 5:31pm

एक अच्छी ग़ज़ल साझा करने क लिए हार्दिक धन्यवाद, आदणीय धर्मेन्द्रजी.

यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा

तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम............   वाह साहब, क्या बात है ! 

’अफ़सरी’ वाले शेर का तंज़ मज़ेदार लगा. बहुत अच्छे.

शुभकामनाएँ और बधाइयाँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 10:17pm

कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला

दिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम.....बहुत खूब 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० धर्मेन्द्र जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by annapurna bajpai on November 18, 2013 at 2:43pm

कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला

दिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम............................. सुंदर पंक्तियाँ , बधाई आपको । 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2013 at 10:25pm

 rajesh kumari जी,  बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2013 at 10:22pm

अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2013 at 10:21pm

 गिरिराज भंडारी जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2013 at 10:20pm

वीनस केसरी जी, भाई शुक्रगुजार हूँ।

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