11212- 11212- 11212- 11212
मेरी चाहतें यूँ निखार दे, मेरी शाम कोई सँवार दे
सरे बाम चाँदनी है खिली, मेरे दिल पे कोई उतार दे
करे रौशनी इन अँधेरो मे, ये चिराग यूँ जले उम्र भर
वो ज़िया सा ताब दे ऐ खुदा, उसे चाँद सा तू वक़ार दे
उसे देखता हूँ चमन-चमन, कि रविश-रविश मैं करूँ कियाम
कभी खुश्बुएँ वो बिखेर दे, मुझे शबनमी सी फुहार दे
वो खुली ज़मीन खिला चमन, वो हवा, महकती हुई फ़िज़ा
वही साअतें करे फिर अता, मुझे फिर खुदा वो बहार दे
ये नया-नया सा लगे है तर्जे सितमगरी मेरे दोस्तो
कि वो बेखबर मुझे ज़िन्दगी के लिये दुआ सरे-दार दे
ये उदासियाँ तो नसीब है, कभी इनसे तू न गुरेज कर
इन उदासियों को समेट ले, शबे बेकराँ यूँ गुज़ार दे
साअतें= पल, क्षण, ज़िया= सूर्य का प्रकाश, वक़ार= प्रतिष्ठा
सरे-दार= सूली पर, बेकराँ= असीम, रविश= बाग के अंदर की पगडंडी
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ प्राची आपके शब्दों से बहुत हौसला मिला है आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई आशीष जी आपका आभार
बहुत खूबसूरत अशआर कहे हैं आ० शिज्जू जी
जिस नजाकत और कोमलता से एहसासों को संजोया गया है उसके लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई
बढ़िया ग़ज़ल भाई शिज्जू जी !
आदरणीय राजेश दीदी आपकी इस प्रतिक्रिया के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ आशीर्वाद बनाये रखें
आदरणीय अखिलेश सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपके शब्द हमेशा उत्साहित करते हैं, आशीष बनाये रखें
वाह्ह्ह्ह बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है शिज्जू जी सभी शेर उम्दा हैं अंतिम शेर के लिए ख़ास दाद कबूलें
इतनी खूबसूरत गज़ल , लय में पढ़ने का मज़ा भी आया। हार्दिक बधाई शिज्जू भाई ।
आदरणीय सौरभ सर आपके शब्दों से बहुत हौसला मिला है आपका तहेदिल से शुक्रिया :-))
आशीष बनाये रखें,
सादर
आदरणीय विजय सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया स्नेह बनाये रखें
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