1212 1122 1212 22
सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ
ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ
ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर
गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ
न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे
तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ
चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह
वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ
ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा
इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा कुछ
निहाँ =छिपा हुआ, खिरामां =गतिमान, आतिशबजाँ =जिसके अंदर आग हो, शादमाँ =हर्षित
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत सुंदर प्रस्तुति है आ0 शिज्जू भाई जी..... बहुत बहुत बधाई...
Respected Mr Gopal sir Thanks a lot for compliment
WONDERFULL. congrats.YOU REALLY PUT YOUR SOUL HERE.
आदरणीय वीनसजी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज जी हौसलाअफ्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई नीरज जी नवाजिशों के लिये आपका शुक्रिया
बहुत खूब भाई जी क्या कहने
शानदार
आदरणीय शिज्जू भाई , बहुत शानदार , लाजवाब और मुकम्मल गज़ल कही है !!!!! हर शे र क़ाबिले दाद है !!!!! आपको बहुत बधाई !!!!!
आदरणीय सिज्जू भाई आप कि ग़ज़ल को पढ़ कर महसूस होने लगा है
कि ग़ज़ल क्या होती है सोच में पड़ गया कैसे सोच पाते हैं आप ऐसा
सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ
ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ
ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर
गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ
न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे
तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ
चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह
वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ
ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला “तनहा”
इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा कुछ
हर एक शेर हर एक शेर से बढ़कर है
लाजवाब बहुत बहुत बधाई ............................................................................................
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