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धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

1222    1222      1222     1222   

धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम

***********************************

तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम

तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम

 

बहुत ठोकर मिली दुनिया से ये सब जानते ही हैं 

थका हारा बहुत लगता है आ तुझको सुलायें हम

 

नये सपने नये अरमान ले के देख आये हैं

भरोसा कर ले आँखें खोल तुमको भी दिखायें हम

 

बहुत बेरंग दुनिया थी तेरी अब तक चलो माना

धनक से रंग लाये हैं तुझे जी भर लगायें हम

 

सभी दिन कब हुये रोशन सभी रातें नही काली 

तेरी तारीकियों में मिल सभी किरणें सजायें हम  

 

तेरी मुस्कान की कलियाँ खिलेंगी फिर से गुलशन में

सुनहरी यादें ताज़ा कर तुझे आ गुदगुदायें हम

 

चलो दिल खोल के बोलें करें शिकवे भी आपस में

जलन दिल में लिये धीरे से काहे बुदबुदायें हम 

        ******************

 मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2013 at 6:50am

आदरणीय चन्द्रशेखर भाई , गज़ल की तारीफ कर हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2013 at 6:48am

आदरणीया महिमा श्री जी , गज़ल को पसन्द कर हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रगुज़ार हूँ !!!!!!!

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 19, 2013 at 1:19am

क्या बात है आदरणीय। जोरदार गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by MAHIMA SHREE on November 18, 2013 at 10:43pm

चलो दिल खोल के बोलें करें शिकवे भी आपस में

जलन दिल में लिये धीरे से काहे बुदबुदायें हम ..... बढ़िया है

 

अच्छी गज़ल है आदरणीय बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 10:07pm

आदरणीय नादिर खान भाई , आपकी  सराहना ने दिल खुश कर दिया , मेरा प्रयास सफल हुआ !!!!! हौसला अफज़ाई से लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!

Comment by नादिर ख़ान on November 18, 2013 at 9:57pm

सभी दिन कब हुये रोशन सभी रातें नही काली 

तेरी तारीकियों में मिल सभी किरणें सजायें हम......  

  

चलो दिल खोल के बोलें करें शिकवे भी आपस में

जलन दिल में लिये धीरे से काहे बुदबुदायें हम ..........

आदरणीय गिरिराज जी उम्दा  गज़ल के लिए ढेरों  बधाइयाँ, एक से बढ़कर एक शेर, लाजवाब प्रस्तुति....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 9:27pm

आदरणीय गणेश भाई , आपको गज़ल अच्छी लगी , मेरी मेहनत सफल हुई !!!! गज़ल की सराहाना और हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 9:25pm

आदरणीय अनुराग भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार !!!!!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 18, 2013 at 9:10pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, 

बहुत बेरंग दुनिया थी तेरी अब तक चलो माना

धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम

यह शेर बढ़िया लगा, बधाई आदरणीय भंडारी भाई साहब । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:21pm

बहुत खूब बड़े भाई साहब बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है 

दिल में गहराई तक उतर गयी है 

दिली दाद काबुल फरमाए 

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