1212 1122 1212 22
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किसी के दिल से, निगाहों से जो उतर जाए,
भला वो शख्स अगर जाए तो किधर जाए.
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बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,
कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.
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सुलग रहे है जुदाई की आग में हम तुम,
इस आरज़ू में जले है, ज़रा निखर जाए.
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पता नहीं हैं हुई क्या हमारी मंज़िल अब,
निकल पड़े हैं जिधर लेके रहगुज़र जाए.
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सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से,
कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर जाए.
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हुई जो आँख मेरी बंद, ‘नूर’ फैल गया,
दिखे ख़ुदा ही मुझे अब जिधर नज़र जाए.
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
//बहुत उड़ान ये भरता है आसमानों की,
कोई तो चाँद के दो चार पर क़तर जाए.//
वाह वाह, बढ़िया शेर, बढ़िया कहन है । अच्छी ग़ज़लकी प्रस्तुति हुई है । बधाई स्वीकार करें आदरणीय ।
आदरणीय बहुत खूब कहा है , बहुत उम्दा ग़ज़ल है
बधाई इसके लिए कई बार पढ़ा
सँभालियेगा इसे आप अब नज़ाक़त से,
कहीं न दिल ये मेरा टूट कर बिखर जाए.
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हुई जो आँख मेरी बंद, ‘नूर’ फैल गया,
दिखे ख़ुदा ही मुझे अब जिधर नज़र जाए....आदरणीय नूर जी आप सतत उम्दा ग़ज़लें लिख रहे हैं ..एक से बढ़कर एक ..इस ग़ज़ल के ये दो शेर मुझे बेहद पसंद आये .जाए के मामले में समझ तो नहीं प् रहा हूँ ..रदीफ़ जाए के मामले में पढ़ते समय अलग अलग सा लग रहा है ..बहुत भली भाँती इस फर्क को महसूस नहीं कर पा रहा हूँ .
आदरणीय निलेश भाई बहुत खूबसूरत उस्तादाना ग़ज़ल है, मतले शुरू हुआ मक्ते पे जाके रुका, वाह वाह वाह दिली दाद कुबूल करेंl
चाँद के पर कतरने कि कुव्वत तो बस आपके ही पास है i आदाब नूर भाई i
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