जन्मदिन पर सबसे विगत में हुई भूलों के लिए क्षमा मांगते हुए "दोहे पुष्प" समर्पित है
अडसठ बसंत में मुझे,मिला सभी का प्यार,
गुरुवर अरु माँ-बाप का, वरदहस्त आधार |
सद्गुरु को मै दे सकूँ, ऐसी क्या सौगात,
चरण पखारूँ अश्क से,इतनी ही औकात |
समर्पण निःशेष रहे, तुम मेरे आधार,
तुमसे तुमको मांग लू,करे अगर स्वीकार |
जन्म दिवस पर दे रही,माँ मुझको आशीष
सद्कर्मी पथ पर चलूँ, भला करे जगदीश |
घर पर सब मिलजुल रहे, एक दूजे के संग
घर पर यूँ खिलते रहे, प्रेम प्रीत के रंग |
मर्यादित जीवन रहे,रहे न चिंता युक्त
अपना ये जीवन रहे, बुरे काम से मुक्त |
पत्नी मेरी जिन्दगी, बच्चे मेरा प्यार,
जुड़े रहे हर हाल में, इनसे मेरे तार |
सुधीजनों से मिल रहा, मुझको सचमुच प्यार
मुक्त ह्रदय से मानता,मै सबका आभार |
प्रभु भक्ति में लीन रहूँ, मन पर रहे न बोझ,
बनी रहे ओकात ये, करू प्राथना रोज |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
रचना पसंद करने एवं शुभ कामनाए व्यक्त करने हेतु आपका ह्रदय से आभार भाई श्री श्याम नारायण वर्मा जी
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ......
|
आपका हार्दिक आभार श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
हार्दिक आभार आपका श्री अखलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
जन्म् दिन और दोहे दोनों की बधाई लक्ष्मण भाई॥
आपकी शुभ कामनाए निश्चित ही मेरे जीवन में सार्थक करेगी | आपका तहेदिल से हार्दिक आभार प्रधान संपादक,
श्री योगराज प्रभाकर जी | शुब शुभ
जन्मदिन की बधाइयों ढेरों शुभकामनायें स्वीकार करें
साहित्य पुरोधा और साहित्य प्रेमी ही ऐसे अवसर पर दुखी हो,सुझाव दे सकता है | छंद के शिल्प से समझौता मेरे अल्प ज्ञान को
ही दर्शाता है | आपका ध्यान आकर्षित करना उचित है, आदरणीय | सादर
आप सभी के स्नेह के लिए हार्दिक आभारी हूँ आदरणीय श्री विजय निलोरे जी, श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी,श्री गिरिराज भंडारी जी,
और विजय मिश्र जी | सादर
जन्मदिन की बधाइयों के बाद एक निवेदन है आदरणीय, कि छंद के शिल्प से समझौता न करें जो कि आपसे अक्सर हो जाता है.
अडसठ बसंत गुजारे, पाकर सबका प्यार जैसी पंक्तियाँ दुःखी कर देती हैं. तब तो और कि यह प्रस्तुति आपने अपने जन्मदिवस के उपलक्ष्य में साझा की है.
सादर
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