नीरसता में बदलता, नाशवान सुख-भाग,
सुख दुख में सम भाव रह,भौतिक सुख है रोग |
भौतिक सुख है रोग, अर्थ जीवन का जाने
खुद का हो उद्देश्य, कृपा हम प्रभु की माने |
कह लक्ष्मण कविराय, भरे मन में समरसता,
स्वच्छ करे मन भाव, तब न होगी नीरसता ||
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आपका श्री राम शिरोमणि पाठक जी | "भोग" शब्द त्रुटी वश भाग छप गया है | पंक्ति इस प्रकार है =
नीरसता में बदलता, नाशवान सुख-भोग,
सुख दुख में सम भाव रह,भौतिक सुख है रोग
हार्दिक आभार आपका श्री विजय मिश्र जी
कुंडलिया छंद सन्देशात्मक लगी, यह संतोष की बात है | आपका हार्दिक आभार श्री (डॉ) गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और श्री
अरुण शर्मा "अनंत" जी |सादर
छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री श्याम नारायण जी वर्मा, और श्री शिज्जू शक्कर जी,
नीरसता में बदलता, नाशवान सुख-भाग,
सुख दुख में सम भाव रह,भौतिक सुख है रोग |तुकांत भी देख लें आदरणीय ..... सादर
आदरणीय सर बहुत सुन्दर संदेशात्मक कुण्डलिया छंद रचा है आपने प्रवाह में थोड़ी कमी लगी बधाई स्वीकारें
लड़ी वाला जी
कुण्डलिया अच्छी है और उसका सन्देश भी i
बधाई हो i
अच्छी कुण्डलिया है आदरणीय लड़ीवाला जी बधाई आपको
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