सैलाब
अश्कों के बहते सैलाब से जूझते
जब-जब उस आख़री खत को पढ़ा
बेचैन दुखती आँख से मेरी , हर बार
काँपता आँसू वह तुम्हारा था टपका ...
कहती थी, खुदा से बात की है तुमने
सुख-दुख हमेशा साझा रहेगा हमारा
अच्छा था फ़ैसला यह तुम्हारे खुदा का
खुश हूँ, तुम्हारा दुख तो अब मेरा रहेगा।
कितनी बातें थीं बाकी अभी तो करने को
सिर्फ़ मौसम पर बातें करने के अलावा
दुहरा दिया क्यूँ यादों ने वह किस्सा पुराना
झोंकों में और भी तो नगमे थे इसके सिवा।
आखरी उदास शाम उदास न होती तो क्या होती
क्या हुआ आज जो तुम्हारी हर याद से रोना आया
तुम थी तो आते थे मौसम पर मौसम कितने, अब
बस सिसकता सावन, कोई मौसम नया नहीं आया।
भीग गए हैं इस सैलाब में उस खत के सारे पन्ने
पर दिल पर लिखे खत का लफ़ज़ एक नहीं बिखरा
अच्छा है टपकते रहे हैं मेरी आँखों से आँसू तुम्हारे
बिना आँचल तुम्हारे, इन आँखों से सैलाब निखरा।
-------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//वियोग को बहुत गहन अभिव्यक्ति मिली है//... रचना के मर्म को छूने के लिए और सराहना के लिए
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई सौरभ जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीया गीतिका जी, आपने रचना को मान दिया, मैं आपका आभारी हूँ।
सधन्यवाद,
विजय निकोर
आदरणीय भाई संदीप जी, रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
भीग गए हैं इस सैलाब में उस खत के सारे पन्ने
पर दिल पर लिखे खत का लफ़ज़ एक नहीं बिखरा
अच्छा है टपकते रहे हैं मेरी आँखों से आँसू तुम्हारे
बिना आँचल तुम्हारे, इन आँखों से सैलाब निखरा।
बहुत बहुत खूब.....लाजवाब बहुत ही खूब......बधाई सर......
अति सुंदर भाव, अथाह गहराई ली हुई रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी
प्रेम का नित्य साथी वियोग....इसी रस में पगी हुई सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई आपको आदरणीय।
रचना को देखते ही लगा, लगता है इस बार अपने अभिव्यक्ति को किसी छंद विधान में बांध दिया पर वास्तव में 'छंद मुक्त', आपके उत्कृष्ट मुक्त भावेश का परिचायक है।
बहुत सुन्दर।
शुभ शुभ
सादर
हर बार की तरह ये प्रस्तुति भी मन को भिगो गई आपकी रचनाएं जैसे गहन खारे सागर से निकल कर आती हैं ,बधाई आपको सादर
अच्छा है टपकते रहे हैं मेरी आँखों से आँसू तुम्हारे
बिना आँचल तुम्हारे, इन आँखों से सैलाब निखरा।---वाह ! आदरणीय निकोरे जी, क्या खूब लिखा है, अति संवेदनशील
और प्रेम वियोग में भिगोई कलम से | बहुत खूब बधाई
आदरणीय विजय सर ... आपकी सभी रचनाएं भावनात्मक तो होती ही है और मन के भीतर तक छु जाती हैं ... ये प्रस्तुती भी उसी कोमलता से प्रस्तुत हुयी है ... बधाई स्वीकार करें
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय विजय निकोर जी बधाई आपको///सादर
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