एक सिवा मै प्रेम के , करूँ न दूजी बात ।
प्रेम मेरी पहचान हो , प्रेम हो मेरी जात ।
आती जाती सांस में , आये जाये प्रेम ।
प्रेम हो मेरी साधना , प्रेम बने व्रत नेम ।
प्रेम कि लहरें जब उठें , बहे अश्रु की धार ।
प्रेम की वीणा जब बजे , जुड़े ह्रदय के तार ।
प्रेम कि पावन धार में, मेरा मै बह जाय ।
मेरी अंतरआत्मा , प्रीतम से मिल जाय ।
नाची मीरा प्रेम में , प्रेम में मस्त कबीर ।
प्रेम खजाना जब मिला , हुए फ़कीर अमीर
मिट मिट के मिटता रहूँ , मिले अमिट जो होय ।
मिटना ही सौभाग्य है , मिट के जाने कोय ।
छोटा बीज कठोर सा ,जाने नही बहार ।
जब तक मिट्टी में हुआ , मिलके नही निसार ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज ' प्रेम'
Comment
जय हो, जय हो, आपकी सदा जय हो । बहुत बढि़या प्रयास हुआ है, आनंदित हो गया, सादर
नीरज जी
आपके प्रेम विषयक दोहे बहुत सुन्दर है I
बधाई हो i
लाजवाब दोहावली बधाई स्वीकार करें
बाकी सब अरुण ने कह ही दिया है
आदरणीय अरुण जी ने जिस सहज अंदाज़ मे और विस्तार से समझाया है, निसंदेह सब के लिए लाभप्रद है ।
नीरज जी को उनके उत्तम प्रयास के लिए बधाई ।
सुन्दर प्रयास हुआ है भाई जी। आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी से सहमत हूँ////
एक सिवा मै प्रेम के , करूँ न दूजी बात ।
प्रेम मेरी पहचान हो , प्रेम हो मेरी जात ।
दिलखुश कर दिया भाई वाह वाह किन्तु मात्रा जांच लें (तृतीय पद में 14 मात्रा और चतुर्थ में 12 मात्रा)
आती जाती सांस में , आये जाये प्रेम ।
प्रेम हो मेरी साधना , प्रेम बने व्रत नेम ।
वाह लाजवाब (तृतीय पद में 14 मात्रा , चतुर्थ पद में व्रत नेम? समझ नहीं आया भाई)
प्रेम कि लहरें जब उठें , बहे अश्रु की धार । (भाई यदि प्रथम चरण प्रेम लहर हिय में उठें ऐसा करें तो कैसा रहेगा)
प्रेम की वीणा जब बजे , जुड़े ह्रदय के तार । बहुत ही सुन्दर (तृतीय पद में 14 मात्रा)
प्रेम कि पावन धार में, मेरा मै बह जाय ।
मेरी अंतरआत्मा , प्रीतम से मिल जाय । आय हाय (तृतीय पद में 12 मात्रा)
नाची मीरा प्रेम में , प्रेम में मस्त कबीर । (प्रेम में मस्त कबीर =12मात्रा)
प्रेम खजाना जब मिला , हुए फ़कीर अमीर --- भाई गेयता बाधित है ये कैसा रहेगा राजा हुए फ़कीर
(नाची मुझे उपयुक्त नहीं लगा भाई मगन थीं मीरा प्रेम में - झूमे संत कबीर यदि ऐसा कहें तो)
मिट मिट के मिटता रहूँ , मिले अमिट जो होय ।
मिटना ही सौभाग्य है , मिट के जाने कोय । लाजवाब भाई
छोटा बीज कठोर सा ,जाने नही बहार ।
जब तक मिट्टी में हुआ , मिलके नही निसार । कथन स्पष्ट नहीं हो रहा है.
भाई नीरज जी दोहों पर आपको प्रयास करता हुआ देख कर मुग्ध हूँ, बेहद उत्तम दोहावली रची है बस जरा सा मात्रा और गेयता पर ध्यान दें. इस प्रयास पर मेरी ओर से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.
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