ढूँढती है एक चिड़िया
इस शहर में नीड़ अपना
आज उजड़ा वह बसेरा
जिसमें बुनती रोज सपना
छाँव बरगद सी नहीं है
थम गया है पात पीपल
ताल, पोखर, कूप सूना
अब नहीं वह नीर शीतल
किरचियाँ चुभती हवा में
टूटता बल, क्षीण पखना
कुछ विवश सा राह तकता
आज दिहरी एक दीपक
चरमराती भित्तियाँ हैं
चाटती है नींव दीमक
आज पग मायूस, ठिठके
जो फुदकते रोज अँगना
भीड़ है हर ओर लेकिन
पथ अपरिचित, साथ छूटा
इस नगर के शोर में अब
नेह का हर बंध टूटा
खोजती है एक कोना
फिर बनाये ठौर अपना
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय राजेश जी आपका हार्दिक आभार! आपके अनुमोदन से राहत और हिम्मत दोनों प्राप्त हुए.
सादर!
जय हो, जय हो, आपकी बारंबार जय हो आदरणीय । बहुत ही शानदार नवगीत लिखा है, और गीतों में हर जगह के शब्द जो फिट हों, जरूर लेने चाहिए ऐसा मेरा मत है । देसिल बयना सब जन मिट्ठा-- हम तो यही मानते हैं । चिडि़या को सामने रख आपने जो बात कही है और जिस सुंदरता से कही है उसकी तारीफ किए बगैर नहीं रह सकता । लाजवाब.....लाजवाब....हर बंद लाजवाब, आप यूं ही बेहतरीन लिखते रहे और हमें आनंदित करते रहें, सादर
आदरणीय गोपाल जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय शिज्जू जी, आपका हार्दिक आभार!
आपका प्रश्न- मेरा मानना है की ग़ज़ल लिखते समय मात्र गिराने के नियम का पालन करते समय जिस तरह से लोग शब्दों की वर्तनी के साथ छेड़-छड करते हैं, वो नहीं करना चाहिए. आवश्यकता अनुसार हम पढते समय मात्र गिरा सकते हैं बल्कि गिरते ही हैं.
फिलहाल इस चर्चा को यहाँ 'दिहरी' तक ही सीमित रखें, वरना विषयांतर हो जायेगा. इस विषय पर हम कहीं फिर चर्चा करेंगे. मैंने इस शब्द का प्रयोग किया है जो विवाद में है.
सादर!
आदरणीय गिरिराज जी, मैंने अपना मत आपके समक्ष रखा है. यहाँ मेरा प्रयास आपको कुछ बताना नहीं रहता. आपसे सदैव चर्चा ही करता हूँ. हो सकता है कि मेरा सोचना गलत ही हो. इस शब्द ने लिखते समय मुझे बहुत तंग किया था. लिखने के बाद भी कर ही रहा है. आप यदि कुछ जानते हैं तो अवश्य बताएं.
नीरज जी
प्रायः ऐसी कविताओं में लोग भटक जाते है
और विषयांतर कर बैठते है i
पर कमाल है कि आदि से लेकर अंत तक
आपका फोकस मुख्य विषय पर ही रहा i बहुत बहुत बधाई हो प्रिय i
भीड़ है हर ओर लेकिन
पथ अपरिचित, साथ छूटा
इस नगर के शोर में अब
नेह का हर बंध टूटा
उत्कृष्ट भाव, रचना को पढ़ कर सब कुछ सजीव सा लगता हुआ, हृदय को छू जाती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी
आदरणीय बृजेश जी अपनी इस खूबसूरत भावपूर्ण रचना में आपने शब्दों का बहुत ही खूबसूरती से प्रयोग किया है बहुत बहुत बधाई आपको
//ग़ज़ल के नाम पर हिंदी का गला उर्दू उच्चारण के शोर से रूंधने की कोशिशों का मैं विरोध करता हूँ//
क्षमा कीजिये आपकी ये बात कुछ स्पष्ट नही हुई
सादर,
आदरणीय नीरज भाई , शंका का बहुत विस्तार से समाधान करने के लिये आपका आभारी हूँ , देशज शब्दों के विषय मे बताने के लिये आपका अलग से शुक्रिया !!!!
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