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पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |
सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||
-----------------------------------------------

हाय ! कौन आकर्षण में
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से 
खेलन लगे हैं रास ||

घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज 
गुंफन के सब फांस ||

करने लगे..... झंकृत...
मधुर श्वासों को सुर ताल |
होने लगे मधुराग
गुंजित..... अनायास ||

करने लगे अठखेलियाँ-
यक्ष - यक्षिणी आज |
रचने लगे तप्त अधरों से -
गीत बुन्देली.....कुछ ख़ास ||

सिमटने लगे तम की चादर में 
पर्व आलिंगनों के अपार |
विस्मृत तन-मन हुए... आत्मा -
-अविभूत अद्भुत हास विन्यास ||

सो गया फिर....वह कुशल गन्धर्व !
क्षन - उसी - वीणा के पास |
अमर हो गया वह...स्वर्णिम
भीगा -भीगा सा मधुमासी इतिहास ||

---------------अलका गुप्ता ---------------
नोट - मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 25, 2013 at 12:25am

सुंदर भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया अलका जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2013 at 7:28pm

अलका जी

बड़े मनोहर भाव है

यह आपके ह्रदय की

मनोरमता को व्यक्त करते है  i मेरी शुभ कामनाये i

कृपया ध्यान दे...

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