पूरण करे प्रकृति अभिमंत्रित काम ये काज |
सृष्टि निरंतर प्रवाहित होवे निमित्त यही राज ||
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हाय ! कौन आकर्षण में
बींध रहा है ...मन आज |
नयन ही नयनों से
खेलन लगे हैं रास ||
घायल हुआ मन...अनंग
तीक्ष्ण वाणों से आज |
टूट गए बन्धन ...लाज
गुंफन के सब फांस ||
करने लगे..... झंकृत...
मधुर श्वासों को सुर ताल |
होने लगे मधुराग
गुंजित..... अनायास ||
करने लगे अठखेलियाँ-
यक्ष - यक्षिणी आज |
रचने लगे तप्त अधरों से -
गीत बुन्देली.....कुछ ख़ास ||
सिमटने लगे तम की चादर में
पर्व आलिंगनों के अपार |
विस्मृत तन-मन हुए... आत्मा -
-अविभूत अद्भुत हास विन्यास ||
सो गया फिर....वह कुशल गन्धर्व !
क्षन - उसी - वीणा के पास |
अमर हो गया वह...स्वर्णिम
भीगा -भीगा सा मधुमासी इतिहास ||
---------------अलका गुप्ता ---------------
नोट - मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुंदर भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया अलका जी
अलका जी
बड़े मनोहर भाव है
यह आपके ह्रदय की
मनोरमता को व्यक्त करते है i मेरी शुभ कामनाये i
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