निरंतरता
निरंतरता?
निरंतरता क्या है?
यही न
कि पलक के झपकते ही यहाँ
सब बदल जाता है निरंतर
उतर-उतर जाता है दिन
फिसलते हर पल की तरह ...
मेरे उसे जी लेने से पहले
बार-बार
बदल-बदल जाने की निरंतरता
"कल के वायदे
कल के थे
आज की बात कुछ और"
मात्र इतना ही कह कर
बदल जाते हैं दिल ...
हाथ में आया न आया तब
सब छूट जाता है, टूट जाता है
मन का नियंत्रण
मिट्टी के खिलोने की तरह
बार-बार
टूट-टूट जाने की निरंतरता ...
परछाईं भी हिलती है, सहमी, दबे पाँव
पेड़ों की फैली नंगी बाहों के बीच
उड़ते सूखे पत्ते भी भागते हैं
दूर, पेड़ों से... अपनों से ... डरते
बचे हुए कुछ पत्तों की सर-सर से
टूट जाता है वक्त का ठहराव
मौसम-पेड़-पत्ते सह लेते हैं बदलाव... सभी
एक मेरे सिवा
रह जाए न अभाव ... एकाकीपन का
कुछ और अकेला हो जाता हूँ
बार-बार
एकाकीपन की निरंतरता ...
निरंतरता के नाम
किया नहीं है क्या हमने
किसी से प्यार?
चिपकी हैं हृद्य के शीशे पर
रिश्तों की धूल की परतें ... सीने में
------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
//बहुत सुन्दर भावों से पगी आपकी रचना ...//
आपकी प्रतिक्रिया मेरी प्रेरणा का स्रोत है, आदरणीय भाई गिरिराज जी।
उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद।
सादर,
विजय निकोर
//मैं आपसे निरंतर प्रेरणा पाता हूँ । ईश्वर यह निरंतरता बनी रहे। अद्भुत भाव , अद्भुत --------//
माननीय भाई गोपाल नारायन जी, आपने इन शब्दों से जो मान मुझको दिया है,
ईश्वर से प्रार्थना है कि मैं इस के योग्य बन सकूँ और बना रहूँ।
आपका हार्दिक आभार।
सादर,
विजय निकोर
//आपकी इस रचना ने दिल छू लिया है, आपके जीवन का अनुभव मोती की शक्ल में कविता रूपी हार में पिरोया हुआ लग रहा है//
रचना के भाव और कथ्य के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय शिज्जु जी।
सादर,
विजय निकोर
अद्भुत शायद यही शब्द इस रचना की उन्मुक्त प्रसंशा के लिए प्रयुक्त होना चाहिए
निरंतरता के माध्यम से दिल की बात कहना
ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब
और क्या कहूँ ..............बाकी तो सबने कह ही दिया है
बधाई हो सर जी बहुत बहुत बधाई हो
अदरणीय विजय जी सुंदर रचना , सुंदर भाव सम्प्रेषण बहुत बधाई ।
"कल के वायदे
कल के थे
आज की बात कुछ और"
मात्र इतना ही कह कर
बदल जाते हैं दिल ...
हाथ में आया न आया तब
सब छूट जाता है, टूट जाता है
मन का नियंत्रण
मिट्टी के खिलोने की तरह
सच! फिर भी जीवन निरंतरता लिए हुए है, अथाह गहन भाव रचना में सदा की तरह बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी
सादर नमस्ते आदरणीय।
कविता अच्छी लगी। ऊपर के तीन बन्द में निरंतरता नकारात्मकता का द्योतक है वहीं अंतिम बन्द में आपने जिस निरंतरता (प्रेम में निरंतरता)की बात कही है,यदि वह निरंतरता आ जाये तो शायद नकारात्मता गौड़ हो जाती है।
महत्वपूर्ण प्रश्न से कविता का अंत किया है जो कि एक शुरुआत का आह्वाहन कर रहा है।
सादर बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए।
शुभ शुभ
परछाईं भी हिलती है, सहमी, दबे पाँव
पेड़ों की फैली नंगी बाहों के बीच
उड़ते सूखे पत्ते भी भागते हैं
दूर, पेड़ों से... अपनों से ... डरते
बचे हुए कुछ पत्तों की सर-सर से
टूट जाता है वक्त का ठहराव
मौसम-पेड़-पत्ते सह लेते हैं बदलाव... सभी
एक मेरे सिवा.....
वाह ... गजब ....आपको पढना ... बस बहते जाना भाव और शब्दों के ... तरंगों में ... हार्दिक बधाई आदरणीय
वाह........ अतिसुन्दर !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online