धरती के उस छोर पर
धानी चूनर ओढ़ कर
वसुधा मिलती हैं अनन्त से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!
बन्धन सारे तोड़ कर
लहरों की चादर ओढ़ कर
दरिया मिलता है किनारे से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ!!
पर्वतों से निकल कर
लम्बी दूरी चल कर
नदियाँ मिलती है सागर से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ!!
बसंती भोर में
खिले उपवन में
भँवरे फूलों से मिलते हैं जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!
स्वाति नक्षत्र के
वर्षा की इक बूँद से
तृप्त हो चातक मिलता है जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ!!
पूनम की रात में
चाँदनी विस्तार से
किलोल करती मिलती हैं जहाँ
चलो मिलतें हैं वहाँ !!
जमुना के तट पर
बाँध उमंगो की डोर
मिलती है राधा कृष्ण से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!
सांसों की लय तोड़ कर
नश्वर काया छोड़ कर
आत्मा परमात्मा से मिलती है जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सरस, प्रीतमय रचना मन को प्रेम रस में भिगो गई l
बहुत साधुवाद, आदरणीया मीना जी l
सादर,
विजय निकोर
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया मीना जी .. हार्दिक बधाई आपको ।।।। सादर
स्वाति नक्षत्र के
वर्षा की इक बूँद से
तृप्त हो चातक मिलता है जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ!! ---वाह- वाह मीना जी बहुत प्यारी रचना लिखी पढने में देर की खेद है व्यस्तता इतनी ज्यादा होती है की चाहते हुए भी सभी रचनाएँ नहीं पढ़ पाती,इस प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई
आदरणीय मीना जी , सुन्दर , मनमोहक गीत के लिये आपको दिल से बधाई !!!!
आदरणीय मीना जी , सुन्दर , मनमोहक गीत के लिये आपको दिल से बधाई !!!!
आदरणीय मीना जी , सुन्दर , मनमोहक गीत के लिये आपको दिल से बधाई !!!!
रचना को प्रोत्साहित करती टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार आ० राजेश मृदु जी
वाह-वाह, बहुत ही बढि़या, जीवन के कोलाहल से दूर जहां मन केवल मन को मिले, उस छोर तक ले जाती सुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई, सादर
प्रिय जीतेंद जी रचना सराहने हेतु सस्नेह आभार स्वीकारें
आ० अन्नपूर्णा जी रचना सराहने हेतु हार्दिक आभार स्वीकारें आप सब का प्रोत्साहन ही मुझे लिखने को प्रेरित करता है
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