कली बेजार है, अपनी नजाकत से
बला की खूबसूरत हैं, क़यामत से/१
अकेला हुस्न जो देखा सरे-महफ़िल
तो हम पहलू में जा बैठे शरारत से /२
ज़मीं पर चाँद उतरा है ख़ुशी है ; पर
सितारे ग़मज़दा हैं इस बगावत से /३
बदन सोने सरीखा है , अगर मानो
जरा सा तिल लगा दूँ मैं, इजाजत से /४
बड़े खामोश रहते हो, वजह क्या है
समंदर दिल में रक्खा है हिफाजत से/५
सुना जो बागबां से आप का किस्सा
गुलिस्तां छोड़ आये हैं शराफ़त से /६
मेरी माँ फिक्रमंदी में, दुआगो है
के रख अल्लाह बेटे को मुहब्बत से /७
.................................................
वज्न: १२२२ १२२२ १२२२
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Comment
महानुभाव vijay nikore जी ...कृतग्य हूँ आपका ! बहुत बहुत धन्यवाद जो ग़ज़ल को आपका स्नेह मिला ...विनीत नमन सहित :)
आदरणीय राजेश 'मृदु' जी हार्दिक अभिनन्दन आपका ! बहुत मेहरबानी ...स्नेह देते रहिएगा ....सादर नमन सहित :)
इस सुंदर गज़ल के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आनंद आ गया आदरणीय, हार्दिक बधाई
माननीया coontee mukerji जी ...चरण स्पर्श ! आपने अपना आशीष दिया , ग़ज़ल सचमुच ही अभिभूत होगी ...बहुत बहुत धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँ ! सादर :)
अकेला हुस्न जो देखा सरे-महफ़िल
तो हम पहलू में जा बैठे शरारत से /२..........अच्छा कटाक्ष है
सुना जो बागबां से आप का किस्सा
गुलिस्तां छोड़ आये हैं शराफ़त से /.........बहुत खूब......दाद कूबूल करें सारथी जी.
सादर/कुंती.
श्रीमान बसंत नेमा साहब ...ह्रदय से असीम गहराइयों से आपका आभार ! ..नमन सहित :)
आ0 सारथी जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आप ने .. सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई
vandana मैडम , इस स्नेहाशीष के लिए सादर धन्यवाद ! बहुत बढ़िया लगा , आपकी उपस्थिति बहुमूल्य है नाचीज के लिए ! सादर नमन सहित :)
आदरणीय Nilesh Shevgaonka साहब, जर्रा-नवाजी का शुक्रिया ! ममनून हु जनाब ! मैं तो सभी मोहतरम-हजरात की बातों पर अमल करता हूँ ..जो कुछ भी सीख रहा हूँ , इसी मंच से ! आप सब गुणीजन, ही तो मार्गदर्शक हैं ! मैं अति शीघ्र आप सबके निर्देशानुसार बदलाव करूँगा !...कोटिशः आभार निलेश साहब ...नमन सहित :)
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