अमर पुष्प
कुछ बातें ऐसी थीं
कुछ ठहरी हुई कुछ चंचल
कुछ कही हुई
कुछ अनकही.
कुछ सपने
पलकों में थे बिखरे
ख्यालों की लम्बी दरिया में
कुछ बातें थी उपली.
मैं तुम्हें देखती थी
मुस्काते नयनों से
तुम भी देखते थे
पर रहते थे मौन.
तुम्हारे आस-पास
बन तितली उड़ती रहती
तुम्हारे हृदय का पट न खुला
मैं पहेली बूझ न सकी.
तुम्हारी चुप्पी ने
मेरे कितने सवालों को उलझाया
एक डोर सुलझा न सकी
मैं और उलझती चली गयी.
दिन रात मन में
कितने प्रश्न उभरते
और मेरी कितनी ही शामें
उथले जल में डूबती उतराती रहीं.
अमर लता सी उतर रही थी
मूक प्रेम मेरे कानन में
ज़िंदगी के सुनहरे पुष्प
खिलने लगे सूने आंगन में.
मन की व्यग्रता
प्रति पल थी बढ़ती
तब मैंने देखा तुमको
लहरों को गिनते हुए अविरल -
मैं भी तो
गिन रही थी कुछ पल
अपनी इन उंगलियों में सजल.
रात के सन्नाटे में
एक अमर पुष्प कब खिला
तुम जान न सके
दिन के उजाले में
कुछ साये थे अनछुए
कुछ रहस्य हो रहे थे उज्ज्वल.
मन के प्राचीर में
प्रेमदूत ने दी जब दस्तक
तुम्हारे हृदय में
एक हलचल सा मचा
और उतर आया चाँद
तुम्हारी सफेद हथेली पर.
समय ने बदला करवट
वसंत के संग होने लगी
धूप-छाँव की अठखेलियाँ
जीवन संगीत लहराने लगा -
विटप से लिपट गयी अमरलता
और
खिल उठा जीवन का ‘अमर पुष्प’.
(मौलिक तथा अप्रकाशित)
Comment
//तुम्हारे आस-पास
बन तितली उड़ती रहती
तुम्हारे हृदय का पट न खुला
मैं पहेली बूझ न सकी.// ............. सारी कविता में आपने ऐसे ही सुंदर भाव पिरोए हैं। हार्दिक बधाई।
सादर,
विजय निकोर
खिल उठा जीवन का ‘अमर पुष्प’... बहुत सुन्दर अंत , बहुत सुन्दर भावों से परिपूर्ण सुन्दर रचना के लिए बधाई आदरणीया ..
आदरनीया कुंती जी , बहुत खूबसूरत रचना हुई है !!! आपको तहे दिल से बधाई !!!!!
खिल उठा जीवन का ‘अमर पुष्प’...
सुन्दर भाव समाहित खूबसूरत रचना , अंत पूर्ण सकारात्मकता लिए हुए, बधाई स्वीकारें आदरणीया कुंती जी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कुन्ती जी .. हार्दिक बधाई आपको ।।।। सादर
डॉ गोपाल जी,श्याम जी, मेरा हार्दिक आभार.आज कल हर तरफ इतने मारा मारी हो रही है कि जी करता है कुछ देर प्रेम की सुंदर कानन में बैठ ली जाय.उसी प्रेम कानन का पुष्प मैं ने अपने अतीत के आंगन से चुनी है.
सादर
कुंती
राजेश जी,( उतर आया चाँद सफ़ेद हथेली पर) यहाँ सांकेतिक भाषा का प्रयोग हुआ है.
सफ़ेद हाथ-खाली हाथ
चाँद प्रेम का प्रतीक है.नायिका कह रही है नायक से कि मेरी प्रेम का संदेश जब प्रेमदूत तुम तक पहुँचाया तब तुम भी उस आकर्षण से बच न सके तुम्हारा रिक्त हृदय में भी प्रेम उतर आया........प्रेम के कई रंग होते हैं राजेश जी आशा है आप की जिज्ञासा शांत हो गयी होगी.
धन्यवाद.
आनंद आ गया आदरेया, बहुत ही आनंद पर एक बात नहीं समझा 'और उतर आया चाँद तुम्हारी सफेद हथेली पर'. हथेली सफेद क्यों थी....यह नहीं बूझ पाया, सादर
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
माननीया
क्या बात है ----?
एक ही कविता में इतने उतर-चढाव
और अंत कितना खूबसूरत ?
प्रेम दूत, अमरलता और अमरपुष्प i लाजवाब i बधाई हो माननीया i
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