ऑंखो में था जो
सपना गुम हुआ,
वफा की राह
टूटा वह
मैं बिखर गया
है भरोसा प्यार पर
तेरे हमें इस कदर
वेवफा नहीं कहूँगा
कभी मेरे जानेजिगर
मेरी ही चाहत
में रही शायद
कमी होगी
नहीं याद करती
दूर हो चली,
चली थी बनने
जो कभी मेरा हमसफर।
जब रोया मैं याद कर
उसके तराने को
अश्क सुखाये मेरे
दिल की जलन ने
पी गये बंद ओठ
यादों के अश्क को।
खुले ओंठ तो निकले बस
शब्द यही
नफरत की ऑंधी ने
उड़ाया घरौंदा मेरे प्यार का।
चले पड़े उस राह पर
जिस पे चलाया तूने
ना रूसबा हो
मेरी हार से तू
मुकदर से लड़ गया मै,
सिर्फ इस लिये।
अब तो बस यही दुआ है
तेरे प्यार के लिये
ना कभी पहुँचे दिल को ठेस
ऐ मेरे प्रीत तुझे
हर मोड़ पर मिले खुदा
धूप में प्यार की छांव
देने के लिये
ना समझना
तेरे जाने पे शिकवा करेगे
तेरी यादो का सहारा ही
बहुत है अखंड को
जीने के लिये।
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी की रचना
Comment
आदरणीय राजेश जी उत्साहवर्धन हेतु प्रणाम
आदरणीया मीना जी उत्साहवर्धन हेतु आपको प्रणाम
सही कहा आदरणीये नीरज जी आपने आप अभी नर्सरी में है, आप भरे हुए गागर है छलकते नहीं है।
बहुत सुन्दर रचना बधाई आप को
भाई जी मैं तो नर्सरी में हूँ! :)))))))
आदरणीय नीरज जी आपको इस कविता पर अपने विचार रखने पर मैं आपको नमन करता हूँ, अभी हम एल के जी में हैं आपका मार्गर्दशन रहा तो बोर्ड की परीक्षा भी पास कर जायेगें। मार्गर्दशन के लिये प्रणाम स्वीकार करे।
बढ़िया! आपको बहुत बधाई!
कविता में कॉमा और विराम चिन्हों के विकल्प के रूप में पंक्तियाँ तोड़ने और स्पेस का प्रयोग किया जात है! ऐसे में विराम चिन्हों के प्रयोग पर आपके विचार क्या हैं? आपका मार्गदर्शन मेरे लिया उपयोगी होगा!
सादर!
भली लगी आपकी प्रस्तुति, साथ चलते रहे, सादर
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