For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऑंखो  में था जो

सपना गुम हुआ,

वफा की राह

टूटा वह 

मैं बिखर गया

है भरोसा प्‍यार पर

तेरे हमें इस कदर

वेवफा नहीं कहूँगा

कभी मेरे जानेजिगर

मेरी ही चाहत

में रही शायद

कमी होगी

नहीं याद करती

दूर हो  चली,

चली थी बनने

जो कभी मेरा हमसफर।

जब रोया मैं याद कर

उसके तराने को

अश्‍क सुखाये मेरे

दिल की जलन ने

पी गये बंद ओठ 

यादों के अश्‍क को।

खुले ओंठ तो निकले बस

शब्‍द यही

नफरत की ऑंधी ने

उड़ाया घरौंदा मेरे प्‍यार का।

चले पड़े उस राह पर

जिस पे चलाया तूने

ना रूसबा हो

मेरी हार से तू

मुकदर से लड़ गया मै,

सिर्फ इस लिये।

अब तो बस यही दुआ है

तेरे प्‍यार के लिये

ना कभी पहुँचे दिल को ठेस

ऐ मेरे प्री‍त तुझे

हर मोड़ पर मिले खुदा

धूप में प्‍यार की छांव

देने के लिये

ना समझना 

तेरे जाने पे शिकवा करेगे

तेरी यादो का सहारा ही

बहुत है अखंड को

जीने के लिये।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी की रचना

 

 

 

Views: 530

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Akhand Gahmari on December 2, 2013 at 2:09pm

आदरणीय राजेश जी उत्‍साहवर्धन हेतु प्रणाम

Comment by Akhand Gahmari on December 2, 2013 at 2:08pm

आदरणीया मीना जी उत्‍साहवर्धन हेतु आपको प्रणाम

Comment by Akhand Gahmari on December 2, 2013 at 2:04pm

सही कहा आदरणीये नीरज जी आपने आप अभी नर्सरी में है, आप भरे हुए गागर है छलकते नहीं है।

Comment by Meena Pathak on December 2, 2013 at 1:57pm

बहुत सुन्दर रचना बधाई आप को 

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 12:18pm

भाई जी मैं तो नर्सरी में हूँ! :)))))))

Comment by Akhand Gahmari on December 2, 2013 at 12:02pm

आदरणीय नीरज जी आपको इस कविता पर अपने विचार रखने पर मैं आपको नमन करता हूँ, अभी हम एल के जी में हैं आपका मार्गर्दशन रहा तो बोर्ड की परीक्षा भी पास कर जायेगें। मार्गर्दशन के लिये प्रणाम स्‍वीकार करे।

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 11:57am

बढ़िया! आपको बहुत बधाई!

कविता में कॉमा और विराम चिन्हों के विकल्प के रूप में पंक्तियाँ तोड़ने और स्पेस का प्रयोग किया जात है! ऐसे में विराम चिन्हों के प्रयोग पर आपके विचार क्या हैं? आपका मार्गदर्शन मेरे लिया उपयोगी होगा!

सादर!

Comment by राजेश 'मृदु' on December 2, 2013 at 11:46am

भली लगी आपकी प्रस्‍तुति, साथ चलते रहे, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service