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मेरे किरदार पे वो शक जताता है
बिना ही बात वो तेवर दिखाता है
नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी
मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है
बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर
मेरा ये दिल उसे अपना बताता है
*निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर
मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है
मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल
मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है
*सशोधित
संजू शाब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अदरणीय राजेश जी रचना आपको अच्छी लगी मैं आभारी हूँ । मैं मज़ाक की बातों को मज़ाक के तौर पर ही लेती हूँ ,हाँ अगर आपने यह बात गंभीरता से कही होती तो मैं जरूर इसका जवाब विस्तार से देती । वैसे तमाम विसंगतियों के बावजूद दिल उसे अपना ही बताता है ,और वो इस कमजोर कड़ी का भरपूर फायदा उठाता है ,इसी क्रम में वो प्यार की पट्टी भी पढ़ाता है । सादर
रचना तो अच्छी है पर इतना विरोधाभाष क्यों, दिल जिसे अपना बताता है वो प्यार की पट्टी कैसे पढ़ा सकता है, कहीं ये दिल ही तो दिलफरेब नहीं, बुरा ना मानें, कभी-कभी मैं मजाक भी कर लेता हूं, सादर
आदरणीया संजू जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल,बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय जितेंद्र गीत जी ,गिरिराज भण्डारी जी ,शिज्जु जी ,सरिता जी ,अरुण अनंत जी ,वैद्यनाथ सारथी जी ,डॉ गोपाल जी
रचना अनुमोदन हेतु आप सभी की हृदय से आभरी हूँ ।
आदरणीया गीतिका जी आपने तो कमाल ही कर दिया ,खूब समझा आपने मेरे मन को ,शेर दर शेर जिस प्रकार से आपने मर्म को पकड़ा है वैसी अपेक्षा किसी सहृदय से ही की जा सकती है , मेरी समझ से सहृदयता आपका खास गुण है । रचना के विस्तृत अनुमोदन हेतु आपकी आभारी हूँ ।
,जैसे अंगार की स्याही में डुबो कर लिखे हों वाह
अदरणीया राजेश जी रचना के मर्म को समझने हेतु आपकी आभारी हूँ । हौंसला आफजाई के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ।
लेकिन ये कौन है जो
जिसे दिल आपका अपना बताता है
वही सम्मान की धज्जी उड़ाता है
संदीप जी यह कोई मेरी व्यक्तिगत समस्या नहीं अपितु समूचे स्त्रीजाति कि समस्या है । रचना अनुमोदन के लिए आपकी आभरी हूँ , आगे भी स्नेह बनाए रखें ।
लेकिन ये कौन है जो
जिसे दिल आपका अपना बताता है
वही सम्मान की धज्जी उड़ाता है
आदरणीय संदीप जी कोई एक हो तो बताऊँ ,ऐसे चरित्र तो समाज मे बहुतायत देखने को मिल ही जाते है । मैंने समाज की सच्चाई को ही ईमानदारी से अभिव्यक्त करने की कोशिस मात्र की है,स्व के माध्यम से सर्वानुभूति के शिखर तक पहुँचने की चेष्टा की है । फैसला आप सभी गुड़ीजनों के हांथ कि मेरा प्रयास कहाँ तक सार्थक है ।
संजू जी
दिल के हर पहलू को छूती है ये ग़ज़ल
लाजवाब i बधाई हो i
नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी
मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है
मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल
मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है.......उम्दा ! बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है मोहतरमा ....मुबारक
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