भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,
मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,
लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,
यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,
ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,
खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,
बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....
मौलिक व अप्रकाशित ..
Comment
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
बहुत सुन्दर गज़ल | बधाई आप को आदरणीय अरुन जी | सादर
आदरणीय बृजेश भाई जी आपका सदैव स्वागत है
आदरणीया गीतिका जी मतले की रूह तक पहुँचने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ग़ज़ल पसंद आई सुनकर सुखद लगा
आदरणीय अरुण भाई, मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार! बात स्पष्ट करने के लिए आपका आभार!
भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो, ,,,वाह बहुत खूब मतला हुआ है| परस्पर प्रेम आधा हो, एक दूसरे का,एक दूसरे के लिए प्रतिबद्ध होना, दोनों का आधा आधा प्रेम, मिलके एकत्व का निर्माण करते हैं| "प्रेम गली अति साँकरी, जा मे दो न समाय" , आपकी भाव क्षमता को नमन!
हार्दिक शुभकामनायें !!
आदरणीय बृजेश भाई जी हृदयतल से हार्दिक आभार आपका स्नेह यूँ ही बना रहे. आदरणीय बृजेश भाई जी मैंने काफिया केवल आ लिया हुआ.
वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! वाह! आपको हार्दिक बधाई!
एक बात पूछनी थी आपसे कि क्या 'ध' और 'द' की तुकांतता मान्य है?
सादर!
आदरणीया क्यूंकि प्रेम कभी सम्पूर्ण नहीं होता आधा अधूरा ही होता है
मतला तो ठीक है
पर यह आधा क्यों? यह समझ नहीं आया
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