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चोटिल अनुभूतियाँ

कुंठित संवेदनाएँ

अवगुंठित भाव

बिन्दु-बिन्दु विलयित

संलीन

अवचेतन की रहस्यमयी पर्तों में

 

पर

इस सांद्रता प्रजनित गहनतम तिमिर में भी

है प्रकाश बिंदु-

अंतस के दूरस्थ छोर पर

शून्य से पूर्व

प्रज्ज्वलित है अग्नि

संतप्त स्थानक 

 

चैतन्यता प्रयासरत कि

अद्रवित रहें अभिव्यक्तियाँ

 

फिर भी

अक्षरियों की हलचल से प्रस्फुटित

क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों का चेहरा

पिघला है-

व्युत्पन्न अदृश्य धारा के पदचिन्ह

शेष हैं अभी

 

सतर में अर्थ की तलाश है

 

- बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on December 4, 2013 at 6:34pm

आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बहुत प्रोत्साहन मिला!

Comment by बृजेश नीरज on December 4, 2013 at 6:33pm

आदरणीय शिज्जु जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Arun Sri on December 4, 2013 at 11:29am


चोट खाना  , भूलने का प्रयास कर भी न भूल पाना , याद आने पर सँभालने का असफल प्रयास और अंततः शाब्दिक हो जाना ! यही तो है कवि हो जाने का सम्पूर्ण चक्र ! इन्ही अभिशापों को जीता हुआ मानव , कवि हो जाने का वरदान प्राप्त करता है ! 
आपकी हर कविता धीरे धीरे अपने सम्मोहन में जकड़ लेती है पाठक को लेकिन ये कविता तो चमत्कृत कर रही है ! अति गहन , अति मनभावन ! बहुत कम पढ़ने को मिलती हैं ऐसी कविताएँ ! जय हो !


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 3, 2013 at 11:57pm

बहुत अच्छी रचना हैं आदरणीय बृजेशजी बधाई स्वीकार करें
सादर,

Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 9:29pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार! ये हाल-फिलहाल में आप विद्व जनों की प्राप्त संगत का असर है कि कुछ ऐसा प्रयास कर सका जो आप लोगों को रुचा!

Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 9:27pm

आदरणीया कल्पना दीदी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 9:27pm

आदरणीय गोपाल जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on December 3, 2013 at 8:33pm

आदरणीय ब्रिजेश जी .. इस बार तो आपकी रचना चमकृत कर गयी .. आपकी सहज सरल शैली एक नयी राह नयी ऊँचाई की और गमन कर रही है .. बेहद सुंदर शब्द संयोजन  ,  उत्कृष्ट भाव नयी शैली  आपके साहित्यिक सृजन  के नए आयाम गढ़ रहे हैं  बहुत -२ हार्दिक बधाई

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 7:25pm

बृजेश जी,सुंदर भावपूर्ण कविता के लिए बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 4:10pm

कल्पनातीत  i

अजगुत ------ अजगुत----=-=- अजगुत-------

मै स्तब्ध i निशब्द i

क्या बात है ब्रिजेश भाई i इतनी अनंत गहराई i

डा ० प्राची जी की  रचनाये याद  आती है i 

 मै  इससे  अधिक कुछ नहीं कहूँगा i

आप  पर माँ की ऐसी ही कृपा  बनी रहे i

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