चोटिल अनुभूतियाँ
कुंठित संवेदनाएँ
अवगुंठित भाव
बिन्दु-बिन्दु विलयित
संलीन
अवचेतन की रहस्यमयी पर्तों में
पर
इस सांद्रता प्रजनित गहनतम तिमिर में भी
है प्रकाश बिंदु-
अंतस के दूरस्थ छोर पर
शून्य से पूर्व
प्रज्ज्वलित है अग्नि
संतप्त स्थानक
चैतन्यता प्रयासरत कि
अद्रवित रहें अभिव्यक्तियाँ
फिर भी
अक्षरियों की हलचल से प्रस्फुटित
क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों का चेहरा
पिघला है-
व्युत्पन्न अदृश्य धारा के पदचिन्ह
शेष हैं अभी
सतर में अर्थ की तलाश है
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय विजय जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय चन्द्र शेखर जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार! :)))))))))
वाह्ह्ह्ह!! चेतन अवचेतन और अहं पराह्म के संबंधों का काव्यमय चित्रण!! साधुवाद! आ0
बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय भाई बृजेश जी ,भाई राजेश मृदु जी क्या कह रहे है ??? //////बहुत बहुत बधाई। … सादर
आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार! आपके शब्द मुझे उत्साहित करते हैं!
आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार! इस बार एक प्रयोग करने का प्रयास किया था! आपका आशीष और स्नेह मेरे हर प्रयास को सार्थकता देता है!
आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश भाई जी निःशब्द अतुकांत रचनाओं में आपकी पकड़ इतनी जबरदस्त है कि बरबस मन आकर्षित होता चला जाता है. हृदयतल से हार्दिक बधाई आपको
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