श्वेत वसना दुग्ध सी, मन मुग्ध करती चंद्रिका।
तन सितारों से सजाकर, भू पे उतरी चंद्रिका।
चाँद ने जब बुर्ज से, झाँका भुवन की झील में,
झिलमिलाती साथ आई, सर्द सजनी चंद्रिका।
पात झूमें, पुष्प हरषे, रात ने अंगड़ाई ली,
पाश में ले हर कली को, चूम चहकी चंद्रिका।
घन घनेरे, आसमाँ से, छोड़ डेरा छिप गए,
जब धरा पर शीत बदली, बन के बरसी चंद्रिका।
पर्वतों से, वादियों से, पाख भर मिलती रही,
सागरों की हर लहर से, खूब खेली चंद्रिका।
प्राणियों में प्रेम बोया, हर किरण से सींचकर,
प्रेमियों सँग गुनगुनाई, रात रानी चंद्रिका।
हर कलम की बन ग़ज़ल, शब भर सफर करती रही,
शबनमी प्रातः में चल दी, भाव भीगी चंद्रिका।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीय चंद्रशेखर जी, हार्दिक धन्यवाद आपका
आदरणीय गिरिराज जी, बहुत बहुत धन्यवाद
प्रिय गीतिका जी, बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीया, कुंती जी हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय गोपाल नारायण जी, बहुत बहुत धन्यवाद
कल्पना जी
अतीव सुन्दर --- चन्द्रिका
बड़ा ही कमनीय वर्णन i आपको भूरि भूरि बधाई i
बहुत सुंदर रचना मन मुग्ध हो गया.कल्पना जी. हार्दिक बधाई.
बहुत खूब, मनमोहक सुकोमल प्रस्तुति हुयी है! गज़ल पर हार्दिक शुभकामनायें आ० कल्पना दी!
आदरणीय कल्पना जी , बहुत सुन्दर रचना , आपको ढेरों बधाई !!!!
सुन्दर चित्र खींचा है आपने आदरणीया, हार्दिक बधाई
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