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अतुकांत कविता - नि:शब्द (गणेश जी बागी)

शब्द कोष से संकलित
क्लिष्ट शब्दों का समुच्चय
गद्यनुमा खण्डित पक्तियों में
शब्द संयोजन
कथ्य और प्रयोजन से कोसों दूर

लक्ष्यहीन तीरों के मानिंद
बिम्ब और प्रतीक
कही तो जा धसेंगे
बस
वही होगा लक्ष्य
फिर.......
पाठक का द्वन्द्ध
बार-बार पढ़ना
पग-पग पर अटकना
समझने का प्रयत्न
गुणा भाग, जोड़ घटाव
सुडोकू सुलझाने का प्रयास
और अंततः
एक प्रतिक्रिया
नि:शब्द हूँ ।

***

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट =>लघुकथा : छवि

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2013 at 10:03pm

आदरणीय राहुल देव जी, आप रचना पर आये और अपनी बेबाक टिप्प्णी दी इसके लिए बहुत बहुत आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2013 at 10:01pm

आदरणीय राजेश मृदु जी, रचना पर आपकी बेबाक टिप्प्णी उत्साहवर्धन कर गयी, बहुत बहुत आभार |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2013 at 9:55pm

आदरणीय गुरुदेव योगराज जी, आपकी टिप्प्णी मेरी रचना को एक्सप्लेन करती है, आपसे सराहना पा मन प्रसन्न है, बहुत बहुत आभार, आशीर्वाद बना रहे, सादर |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2013 at 9:51pm

आदरणीय गिरिराज भाई साहब, आपको रचना पसंद आयी इसके लिए बहुत बहुत आभार, लेखन कर्म और पाठक धर्म का भली भाति निर्वहन हो जाय यह प्रयास हम सब को करना है, शेष डरने की क्या बात !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2013 at 6:56pm

पाठक का द्वन्द्ध
बार-बार पढ़ना
पग-पग पर अटकना
समझने का प्रयत्न
गुणा भाग, जोड़ घटाव
सुडोकू सुलझाने का प्रयास
और अंततः
एक प्रतिक्रिया
नि:शब्द हूँ ।

----मैं भी निःशब्द हूँ आपकी पहली और इतनी जानदार सटीक अतुकांत रचना को पढ़कर ऐसा लगा जैसे आपने प्रत्यंचा खींची और तीर जाने कहाँ-कहाँ लगे,किसी हद तक मैं भी मानती हूँ की रचना कुछ विशेष वर्ग के पाठक जनो को ही ध्यान में रखकर नहीं सभी वर्ग के पाठकों को ध्यान में रख कर की जानी चाहिए संभव नहीं की हर कोई इतना जीनियस हो की शब्द कोष उसकी जबान पर हो ,दूसरी और हमे अपने साहित्य के मानक को भी बरक़रार रखना है तो क्यों न कोशिश यही रहे कि रचना ऐसी रचें  जो अपनी बात लोगों के दिलों तक पंहुचा सके और अपनी छाप छोड़ सके,आपकी रचना को पढ़कर मुझे भी सतर्क होना पड़ेगा अपनी ग़ज़लों में उर्दू के क्लिष्ट शब्दों को ठूंसने का प्रयोग कर रही थी हहाहाहा ,इस पोस्ट पर देर से पंहुची क्षमा चाहती हूँ ,आदरणीय गणेश जी बहुत बहुत बहुत बधाई आपको इस ओबीओ मंथन की रचना पर :)))    

Comment by बृजेश नीरज on December 6, 2013 at 6:18pm

बहुत ही सुन्दर रचना! एक बहुत उपयोगी चर्चा इस रचना के माध्यम से प्रारम्भ हुई है! आपको हार्दिक बधाई और बहुत आभार!

इस रचना के माध्यम से बहुतों की भड़ास निकली! एक बात जरूर कहना चाहूँगा हर रचना की अपनी मांग होती है और उसकी मांग के अनुसार ही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए. मांग के अनुसार शब्दों का प्रयोग ही रचना को सहज बनाता है और वे रचनायें हर पाठक वर्ग के लिए ग्राह्य होती हैं. वे रचनाकार जो क्लिष्ट/ अप्रचलित शब्दों का मोह रखकर रचना करते हैं, वे अपवाद ही माने जाने चाहिए!

पर एक प्रश्न इस पूरी परिचर्चा से जरूर उठता है कि अतुकांत कविता ही सबके निशाने पर क्यों है? क्या अन्य विधाओं में ये काम नहीं होता? क्या ओबीओ पर ही ऐसी रचनाओं की भरमार नहीं है? हिंदी ग़ज़ल में जिस तरह उर्दू और फ़ारसी के शब्द थोपने की कसरत चल रही है, उससे किसी की साँस क्यों नहीं फूलती? मैंने देखा है लोग बड़े चाव से उर्दू और फ़ारसी के शब्द ढूँढ-ढूँढ कर प्रयोग करते है तो भाई हिंदी शब्दों से ऐतराज़ क्यों?

हर विधा का अपना शिल्प और अपनी मांग होती है. अतुकांत की भी है! बिम्बों के सहारे ही बात किया जाना इस विधा की मांग है! जैसे गीत में हम सीधे बात करते हैं और नवगीत में बिम्बों के सहारे. अब यदि बिम्ब पाठक को न समझ आयें तो ये पाठक की समस्या है, न कि रचनाकार की!

इस मंच पर जिस तरह से रचनाकारों ने अतुकांत और शब्दों के प्रयोग पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, वह आश्चर्यचकित करती है!

सड़कछाप शब्दों में गद्य की पंक्तियों को ढोती रचना अतुकांत कविता नहीं होती.

सादर

Comment by Meena Pathak on December 6, 2013 at 2:34pm

  निःशब्द हूँ ..........बहुत बहुत बधाई इस संदेशपरक रचना के लिए आदरणीय बागी जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:23pm

हा हा हा हा सही है आदरणीय

निः शब्द हूँ ..........अद्भुत कलाकारी, कलमकारी

जय हो सादर बधाई हो आपको

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 2:19pm

आदरणीय भ्राताश्री बेहद शानदार अभिव्यक्ति अतुकांत शैली मुझे सबसे अधिक कठिन प्रतीत होती है एक बार कोशिश की थी कुछ कहने की शून्य हो गया था गोल गोल घूमने लगा दिमाग.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 6, 2013 at 9:54am

पाठकों को एक सार्थक संदेश देती हुयी रचना पर हृदय से बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी  :))

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